ओ मां ये रीत किसने और क्यों बनाई है ?
एक ही पल में बेटी क्यों हो जाती पराई है
जिसने अपना बचपन तेरे आंचल और बाप की छाया में बिताया
जिसने भगवान् को आप दोनों में ही है पाया
उस अभागी बेटी ने ये कैसी किस्मत पाई है
…………………………………………………एक ही पल में बेटी क्यों हो जाती पराई है
जिस भाई से लड़ते-लड़ते थकती नहीं थी दिन-रात मैं
जिसकी शिकायते पापा से कर बचाती थी मैं
जिसे सताने का कोई बहाना नहीं गंवाती थी मैं
उसी सबसे प्यारे मेरे भाई ने ही मेरी डोली उठाई है
…………………………………………………एक ही पल में बेटी क्यों हो जाती पराई है
वो मेरी छोटी प्यारी सी बहन जिससे हर हर चीज बांटी मैंने
वो बहन से जिससे हर हर सुख- दुःख बांटा मैंने
वो बहन जिससे ढेरों बातें करती थी सुबह-शाम मैं
वो बहन जो हर बात मैं मेरी ही नक़ल करती थी
आज उसी छोटी प्यारी सी बहन ने ही मेरे हाथों पर मेहंदी रचाई है
…………………………………………………एक ही पल में बेटी क्यों हो जाती पराई है
मेरे पापा जिनका मैं अंश हूँ , जिनकी मैं जान हूँ
जिनका सीना हूँ मैं और उस सीने का अरमान हूँ
जिनका गरूर हूँ मैं जिनका अभिमान हूँ
जिनकी सुबह हूँ मैं जिनकी शाम हूँ
जिनके कंधे के बिना मुझे कभी नींद नहीं आती थी
जिनकी परेशानी मेरी सिर्फ एक हंसी मिटाती थी
जिनके कन्धों पर सारा जहां देखा मैंने
जिनके कदमों में हर दुःख फ़ना देखा मैंने
उसी पापा ने आज मुझसे ही दूरी बनाई है
…………………………………………………एक ही पल में बेटी क्यों हो जाती पराई है
और मां तुझे मैं क्या कहूँ मैं ? मैं तो तेरा ही अक्स हूँ मैं
तेरी आँखों में जो बसा वो प्यारा सा सख्स हूँ मैं
तेरी अधूरी इच्छाओं, आशाओं और उम्मीदों का चिराग हूँ मैं
तेरे साइन में धडकता दिल और उस दिल का राज हूँ मैं
तेरे प्यार और दुलार के अम्बार कि सच्ची हकदार हूँ मैं
जिन्दगी आज हम दोनों को ये कैसे मोड़ पर ले आई है
अपने घर से बिदा करने को तूने खुद अपनी बेटी सजाई है
…………………………………………………एक ही पल में बेटी क्यों हो जाती पराई है
कितना बड़ा दिल है तुम सब का पर उस दादा (बापू) का क्या
जिसकी सीख ने मुझे जिन्दगी की सच्चाई सीखाई है
मेरी हंसीं से जिसके चेहरे की रौनक लौट आई है
जिसके हाथों ने मेरे पिता को जीवन दिया
उन्ही हाथों की उँगलियों ने मुझे भी राह दिखलाई है
…………………………………………………एक ही पल में बेटी क्यों हो जाती पराई है
तुम सब खुश हो मुझे विदा करके ऐसा दिखावा ना करना
सच्चाई का भेद आंसूं खोल देंगें वरना
तुम सब की आँखों का तारा हूँ मैं मुझे पता है
इस घर से ही मेरा वजूद , वरना बेसहारा हूँ मैं
हर बार बेटी को ही अपना सब कुछ छोड़कर
हर युग में परीक्षा भगवान् ने बेटी से ही क्यों करवाई है
…………………………………………………एक ही पल में बेटी क्यों हो जाती पराई है
मैं जहां रहूँ, जैसी भी रहूँ, तुम सब कि खुशियों की ही हर वक्त दुआ करूँगीं मैं
तुम याद करो न करो मुझे, पर तुम सब को याद कर आँखें आसुओं से भरुंगी मैं
मेरा वो बाग़ सदा आबाद रहे गुलजार रहे जिस बाग़ की एक डाली हूँ मैं
उस बाग़ को कभी उजड़ने नहीं दूंगीं क्योंकि उस बाग के मालिक कि रखवाली हूँ मैं
क्यों हर बार माली ने बाग़ से कलियाँ ही चुराई हैं
…………………………………………………एक ही पल में बेटी क्यों हो जाती पराई है
द्वारा: सुखविन्द्र कुमार
अम्बाला , हरियाणा