मानक भाषा
मानक भाषा
मानक का अभिप्राय है- आदर्श, श्रेष्ठ अथवा परिनिष्ठित।मानक भाषा की पहचान यह भी है कि उसका प्रयोग शिक्षित वर्ग के द्वारा अपने सामाजिक, सांस्कृतिक, व्यापारिक, वैज्ञानिक तथा प्रशासनिक कार्यों में किया जाता है।व्याकरणसम्मत परिनिष्ठित रूप मानक भाषा कहलाता है जो विकास की प्रक्रिया से निखरकर प्रयोग करने वालों का माध्यम बन जाता है।
‘मानक भाषा किसी भाषा के उस रूप को कहते हैं जो उस भाषा के पूरे क्षेत्र में शुद्ध माना जाता है तथा जिसे उस प्रदेश का शिक्षित और शिष्ट समाज अपनी भाषा का आदर्श रूप मानता है और प्राय: सभी औपचारिक स्थितियों में, लेखन में, प्रशासन और शिक्षा के माध्यम के रूप में यथासाध्य उसी का प्रयोग करता है।’’
मानक भाषा की परिभाषा
डाo फादर कामिल बुल्के ने अपने अंग्रेजी कोश में ‘स्टैण्डर्ड’ शब्द का अर्थ मानक ही लिया है।
संक्षिप्त ‘हिन्दी शब्द सागर’ में प्रसिद्ध कोशकार श्री राचमन्द्र वर्मा लिखते हैं कि मानक शब्द संस्कृत के ‘मानक’ से बना हैं किसी वस्तु का वह रूप या माप जिसके अनुसार उस वर्ग की और चीजों के गुण-दोषों का माप होता है-मानदण्डय् कहा जाता है।
डाo कैलाशचन्द्र भाअिया – “विभिन्न स्तरों को पार कर ‘गवाँरू बोली’ अथवा ‘अपभाषा ही साहित्यिक एवं मानक’ भाषा का रूप ग्रहण कर लेती है”
डाo भोलानाथ तिवारी –” मानक भाषा, किसी भाषा के उस रूप को होते हैं जो उस भाषा के पूरे क्षेत्र में शु( माना जाता है तथा जिसे उस प्रदेश का शिक्षित और शिष्ट समाज अपनी भाषा का आदर्श रूप मानता है और प्रायः सभी औपचारिक परिस्थितियों में, लेखन में, प्रशासन और शिक्षा के माध्यम के रूप में यथासाध्य उसी का प्रयोग करने का यत्न करता है।”
मानक भाषा के तत्व-
विद्वानों ने मानक भाषा के चार प्रमुख तत्व बताएँ हैं –
1. ऐतिहासिकता – मानक भाषा का गौरवमय इतिहास तथा विपुल साहित्य होना चाहिए।
2. मानकीकरण – भाषा का कोई सुनिश्चित और सुनिर्धारित रूप होना चाहिए।
3. जीवन्तता – भाषा साहित्य के साथ-साथ विज्ञान, दर्शन आदि क्षेत्रों में प्रयुक्त की गई हो तथा नवाचार में पूर्ण रूप से सक्षम हो।
4. स्वायत्ता – भाषा किसी अन्य भाषा पर आश्रित न होकर अपनी स्वतन्त्र लिपि शब्दावली व्याकरण परख हो।
उदाहरणार्थ वर्तमान में मेरठ, सहारनपुर तथा दिल्ली के पास बोली जाने वाली बोली भाषा का परिनिष्ठित रूप है जिसे खड़ी बोली कहा जाता है स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात हिन्दी को मानक भाषा बनाने हेतु काफी प्रयास किया गया और आज हिन्दी का यही रूप प्रचलन में है।
भाषा के मानकीकरण के कारण
भौगोलिक कारण-
जहां क्षेत्र समतल हो, यातायात और संचार-सुविधाएँ पर्याप्त हों, वहाँ को बोली को भाषा और भाषा को मानक भाषा देर नहीं लगती है।
राजनीतिक कारण
राजनैतिक आश्रय किसी भी भाषा के मानकीकरण की प्रक्रिया को तेज कर देता है। जैसे- प्रशासन में प्रयोग करके उनके प्रयोग को बढ़ावा देना।
धार्मिक कारण
जनसामान्य की किसी धर्म विशेष में रुचि और आस्था के कारण विभिन्न धार्मिक ग्रंथों,शास्त्रों, प्रवचनों की भाषा का प्रयोग अनुकरण के कारण बढ जाता है।
सामाजिक कारण
बहुसंख्यक वर्ग द्वारा प्रयोग की जानेवाली भाषा भी विभिन्न गतिविधियों का माध्यम बनकर भाषा के विकास में वृद्धि करती है।
शैक्षणिक कारण
किसी समुदाय के सभी सदस्यों को एक सी शिक्षा प्रदान करने वाली भाषा सर्वमान्य,परिष्कृत और आदर्श भाषा ही हो सकती है।
साहित्यिक कारण
साहित्यकार विभिन्न अनुभूतियों, विचारों और संकल्पनाओं को अभिव्यक्ति प्रदान करने के लिए भाषा के नए-2 प्रयोग द्वारा उसे संवारते, निखारते और परिमार्जित करते रहते हैं।
मानक भाषा की विशेषताएँ-
1. राज-काज की भाषा – राज-काज की भाषा के रूप में मानक भाषा बेहद कारगर सिद्ध हुई है। विभिन्न कार्यालयों, स्कूलों, महाविद्यालयों में यह भाव सम्प्रेषण की दृष्टि से काफी सुविधा जनक होती है।
2. ज्ञान-विज्ञान की भाषा – धर्म, दर्शन और विज्ञान आदि के क्षेत्र में मानक भाषा का प्रयोग भाषा की उपयोगिता को बढ़ाता है।
3. साहित्य व संस्कृति की भाषा- साहित्य लेखन तथा विभिन्न औपचारिक अवसरों पर इसी भाषा पर प्रयोग किया जाता है।
4. मनोरन्जन – मनोरन्जन के क्षेत्र में आकाशवाणी, दूरदर्शन, सिनेमा चलचित्र समाचारपत्र पत्रिकाओं में इसी भाषा का प्रयोग किया जाता है।
5. शिक्षा के क्षेत्र में उपयोगिता – विभिन्न विद्यालयों, महाविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में अध्यापन परियोजना कार्य तथा शोध और अनुसन्धान हेतु इस भाषा का प्रयोग किया जाता है।
6. अनुवाद की भाषा – अनुवाद की भाषा के रूप में अच्छे साहित्य के अनुवाद हेतु हिन्दी मानक भाषा का प्रयोग किया जाता है ताकि अधिक से भाषा के उत्कृष्ट साहित्य को जन-जन तक पहुँचाया जा सके।
7. कानून, चिकित्सा एवं तकनीकी की भाषा – कानून, चिकित्सा एवं तकनीकी के क्षेत्र में से प्रत्येक क्षेत्र की अपनी शब्दावली होती है जैसे विज्ञान, कानून तकनीकी आदि इन शब्दावलियों के मानक रूप तैयार किए जाते हैं, जिससे इस भाषा को बोधगम्य बनाया जा सकता है।
8. सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक- मानक होने के कारण सभी इसका प्रयोग करते हैं। यह सामाजिक प्रतिष्ठा की भाषा होती है।
9. एकता के सूत्र में बाँधने वाली भाषा- मानक भाषा एकता के सूत्र में बाँधती हैं। राजकाज, शिक्षा, सम्पर्क की एक मानक भाषा होने से ये लोगों को एक सूत्र में बाँधती है।
10. शिष्ट समाज की भाषा – शिष्ट समाज के भाषा क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाली भाषा में मानक भाषा का अपना महत्व है। इसके माध्यम से पूरे जन-समुदाय से सम्पर्क स्थापित हो सकता है।
हिन्दी मानक भाषा का अर्थ
हिन्दी भाषा का मानक स्वरूप –
मानक हिन्दी भाषा से तात्पर्य हिन्दी भाषा के उस स्थिर रूप से है जो उस पूरे क्षेत्र में शब्दावली तथा व्याकरण की दृष्टि से समझने योग्य तथा सभी लोगों द्वारा मान्य हो, बोधगम्य हो। अन्य भाषाओं की अपेक्षा प्रतिष्ठित हो, व्याकरण सम्मत हो। हिन्दी की आधुनिक मानक शैली का विकास हिन्दी भाषा की एक बोली, जिसका नाम खड़ी बोली है, के आधार पर हुआ है। हिन्दी बोली ब्रज, अवधी, निमाड़ी आदि क्षेत्रों के लोग परस्पर व्यवहार में अपनी इन्हीं क्षेत्रीय बोलियों का उपयोग करते हैं किन्तु औपचारिक अवसरों पर मानक हिन्दी का ही प्रयोग करते हैं।
उदाहरण स्वरूप मैथिलीशरण गुप्त चिरगाँव के घर में बुन्देलखण्डी बोलते थे, उसी प्रकार हजारी प्रसाद द्विवेदीभोजपुर के थे घर में भोजपुरी बोलते थे किन्तु ये सभी व्यक्ति जब साहित्य लिखते थे तो मानक भाषा का व्यवहार करते थे। अतः हम कहते है कि मानक भाषा अपनी भाषा का एक विशिष्ट स्तर है।
हिन्दी मानक शब्द से तात्पर्य है एक पैमाना जिसकी उत्पत्ति अंग्रेजी के Standard (स्टैंडर्ड) शब्द के स्थान पर हुई है। रामचंद्र वर्मा ने 1949 में सर्वप्रथम अपने प्रकाशित “प्रामाणिक हिन्दी कोष” में मानक शब्द को प्रयुक्त किया। इसका अर्थ उन्होंने निश्चित या स्थिर किया हुआ सर्वमान्य मान या माप बताया जिसके अनुसार किसी भी योग्यता, श्रेष्ठता, गुण आदि का अनुमान या कल्पना की जाती है।
जब यही शब्द भाषा के क्षेत्र में Standard Language (मानक भाषा) के रूप में प्रयुक्त हुआ हिन्दी आज हमारी राजभाषा है और हिन्दी के रूप यहाँ प्रचलन में है। इससे समस्या आती है कि बुन्देली हिन्दी, बघेली हिन्दी, अवधी हिन्दी हरियाणवी हिन्दी आदि। ऐसे में यदि कोई व्यक्ति हिन्दी सीखना चाहे अथवा अपना साहित्य हिन्दी में लिखना चाहे तो फिर किस हिन्दी का प्रयोग करेगा? इस तरह देखें तो एक ऐसी हिन्दी जिसे सभी पढ़ सके, समाचार पत्र दूरदर्शन आदि सभी की भाषा हो। इन्ही सभी कारणों से मानक हिन्दी भाषा को स्थापित किया गया।
मानक हिन्दी भाषा की शैलियाँ
मानक हिन्दी पर जिन सत्रह बोलियों का प्रभाव है, जिसके कारण मानक हिन्दी की तीन शैलियाँ हो गई हैं, ये है-
- संस्कृत-निष्ठ शैली,
- हिन्दुस्तानी शैली,
- उर्दू शैली।
संस्कृत-निष्ठ शैली में खड़ी बोली, और दख्खिनी हिन्दी आती है।
हिन्दुस्तानी शैली में हिन्दुवी, हिन्दुस्तानी, रेख्ता शामिल है।
उर्दू शैली में अरबी-फारसी शैली है।
खड़ी बोली में तत्समशब्दों का प्रयोग अधिक है तद्भव का प्रयोग कम होता है। उर्दू का प्रयोग कुछ इस तरह हुआ है, कि जब अरबी फारसी में अधिकाधिक तत्सम एवं तद्भव शब्दों का प्रयोग होने लगा तो यह उर्दू कहलाई। इस प्रकार आज मानक हिन्दी के लिखित और उच्चरित रूपों में अन्य बोलियों के शब्दों, वाक्य संरचना का प्रयोग होता है। मनुष्य जिस क्षेत्र में रहता है उसका प्रभाव भी उसकी भाषा पर पड़ता है।
हिन्दी मानक भाषा है, जबकि खड़ीबोली उसकी आधारभूत भाषा का वह क्षेत्रीय रूप है जो दिल्ली, रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, मेरठ, सहारनपुर आदि में बोला जाता है। खड़ीबोली क्षेत्र में रहने वाले प्राय: प्रत्येक वर्ग के व्यक्ति द्वारा जो कुछ बोला जाता है वह खड़ीबोली है किन्तु जैसे ब्रज, बुन्देली, निमाड़ी अथवा मारवाड़ी क्षेत्रो में हिन्दी की शिक्षा प्राप्त व्यक्ति परस्पर सम्भाषण अथवा औपचारिक अवसरों पर मानक हिन्दी बोलते हैं वैसे ही खड़ीबोली क्षेत्र के व्यक्ति भी औपचारिक अवसरों पर मानक हिन्दी का प्रयोग करते हैं। संक्षेप में मानक भाषा अपनी भाषा का एक विशिष्ट प्रकार्यात्मक स्तर है। अब हम हिन्दी के निम्नलिखित चार वाक्य लेंगे और देखेंगे कि मानक भाषा की कसौटी पर कौन-सा वाक्य सही उतरता है :
- मैंने भोजन कर लिया है।
- मैंने खाना खा लिया है।
- मैंने खाना खा लिया हूँ।
- हम खाना खा लिये हैं।
विभिन्न क्षेत्रीय एवं सामाजिक भिन्नताओं के आधार पर तीसरे एवं चौथे प्रकार्यात्मक स्तरों के अनेक भेद हो सकते हैं। किन्तु पहले या दूसरे वाक्य का व्यवहार औपचारिक स्तर पर मानक भाषा में सर्वत्र होगा। हिन्दी का सही रूप जो सर्वत्र एक-सा है, सर्वमान्य है, व्याकरणसम्मत है और सम्भ्रांत है, मानक हिन्दी का वाक्य है।
मानक हिन्दी भाषा का महत्व
मानक भाषा के प्रकार
- सामान्य हिन्दी
- क्षेत्रीय बोलियाँ
-
मानक और अमानक भाषा की पहचान
मानक भाषा लिखने के काम आती है और बोलने के भी। लिखित और उच्चरित मानक हिन्दी के जो प्रयोग व्याकरणसम्मत, सर्वमान्य, एकरूप और परिनिष्ठित है उनका संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है।- बहुत से लोग बड़ी ‘ई’ की मात्रा का गलत प्रयोग करते हैं, जैसे शक्ती, तिथी, कान्ती, शान्ती। वास्तव में इनके मानक रूप है- शक्ति, तिथि, कान्ति, शान्ति आदि।
- बहुत से लोग ‘ऋ’ को रि बोलते हैं जैसे रिण, रीता। यह अमानक प्रयोग है; किन्तु ‘ऋ’ अब शुद्ध स्वर नहीं रह गया है। उच्चारण में ‘रि’ को ‘ऋ’ का उच्चारण स्वीकार कर लिया गया है किन्तु लिखने में संस्कृत शब्दों में ‘ऋ’ ही मानक प्रयोग है जैसे- ऋण, ऋता आदि।
- हिन्दी में अंग्रेजी के कुछ ऐसे शब्द प्रचलित हो गए हैं जिनमें ‘ॉ’ की ध्वनि होती है। जैसे- डॉक्टर, कॉलेज, ऑफिस। हिन्दी में डाक्टर, कालेज, आफिस बोलना या लिखना अमानक प्रयोग माना जाता है।
- कुछ शब्द ‘इ’ और ‘ई’ देनों मात्राओं से लिखे जाते हैं जैसे- हरि/हरी, स्वाति/स्वाती। किन्तु व्यक्ति के नाम का मानक रूप वही माना जाता है जो नियम द्वारा मान्य है या वह स्वयं लिखता है जैसे-डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सही है, डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय नहीं, क्योंकि डॉ. हरीसिंह, अपना नाम हरीसिंह लिखते थे।
- कुछ लोग कुछ शब्दों में बड़ी ‘ई’ के स्थान पर छोटी ‘इ’ की मात्रा लगाते हैं। जैसे श्रीमति, मैथिलिशरण। ये अमानक प्रयोग है। इनके मानक रूप है- श्रीमती, मैथिलीशरण।
- हिन्दी में ‘र’ के साथ जब ‘उ’ अथवा ‘ऊ’ की मात्रा लगायी जाती है तब उसका रूप होता है ‘रुपया’ अथवा ‘रूप’। ऋ जिन शब्दों में हिन्दी में ‘औ’ की मात्रा होती है, उनका उच्चारण ‘अ’ ‘उ’ की तरह करना चाहिए, ओ की तरह नहीं। जैसे ‘औरत’ का मानक उच्चारण ‘अउरत’ की तरह होगा, ‘ओरत’ की तरह नहीं। इसी प्रकार ‘ए’ का उच्चारण भी सावधानी से करना चाहिए। ‘मैं’ का उच्चाारण ‘मँय’ की तरह होगा ‘में’ की तरह नहीं। ‘सेनिक’, ‘गोरव’ उच्चारण अमानक है, ‘सैनिक’, ‘गौरव’ आदि मानक।
- संस्कृत के शब्दों में दो स्वरों को एक साथ लिखना अमानक है, जैसे ‘स्थाई’ अमानक है, मानक ‘स्थायी’ है।
- हिन्दी में आजकल अनुनासिक चिह्न चन्द्रबिन्दु(ँ) के स्थान पर अनुस्वार लिखा जाने लगा है, जैसे ‘हँस’ के स्थान पर ‘हंस’। ऐसा लोग लापरवाही के कारण करते हैं। मुद्रण की सुविधा के लिए भी अब हिन्दी में अनुनासिक चिह्न एवं चन्द्रबिन्दु के स्थान पर अनुस्वार लिखा जाने लगा है, जैसे कुंवर, मां, बांस आदि, परन्तु इनके मानक रूप हैं : कँुवर, माँ, बाँस।
- जिन शब्दों के अन्त में ‘ई’ या ‘ई’ की मात्रा (ी ) होती है उनका जब बहुवचन बनाया जाता है तो वह ह्रस्व ‘इ’ की मात्रा में परिवर्तित हो जाती है, जैसे मिठाई-मिठाइयाँ, दवाई-दवाइयाँ, लड़की-लड़कियाँ आदि। इसी प्रकार यदि शब्द के अन्त में ‘ऊ’ की मात्रा हो तो उनके बहुवचन में ह्रस्व ‘उ’ की मात्रा हो जाती है, जैसे आँसू-आँसुओं, लड्डू-लड्डुओं आदि।
- मानक हिन्दी में अब ‘क’ के ‘क़’ का प्रयोग भी होने लगा है। ‘क़’ विदेशी(फ़ारसी, अंग्रेजी) शब्दों में आता है जैसे ‘क़लम’। इसी प्रकार ख़, ग़, ज़, फ़ ध्वनियाँ भी हिन्दी में स्वीकार कर ली गयी हैं। ख़त, गै़रत, ज़नाब, सफ़ा, बोलना पढ़े-लिखे होने की निशानी मानी जाती है।
- ‘व’ और ‘ब’ में भेद होता है। ‘व’ के स्थान पर ‘ब’ बोलना उचित नहीं है। इस प्रकार ‘ज्ञ’ और ‘क्ष’ केवल संस्कृत शब्दों में ही प्रयुक्त होता है।
- हिन्दी में ‘श’, ‘ष’, ‘स’ तीन अलग-अलग ध्वनियाँ हैं- सड़क, शेष, विष, “ाटकोण आदि मानक शब्द रूप हैं
- ‘ष्ट’ और ‘ष्ठ’ का उच्चारण प्राय: भ्रम उत्पन्न करता है। इनके बोलने और लिखने में शुद्धता का ध्यान रखना चाहिए, जैसे ‘इष्ट’, ‘नष्ट’, ‘भ्रष्ट’, ‘स्वादिष्ट’, ‘कनिष्ठ, ज्येष्ठ, घनिष्ठ, प्रतिष्ठा आदि।
- रेफ लगाने में प्राय: भूल होती है। रेफ वास्तव में ‘र’ का हलन्त रूप है। यह जहाँ बोला जाता है, सदैव उसके आगे के अक्षर पर लगता है। जैसे कर्म, धर्म, आशीर्वाद आदि। आश्र्ाीवाद लिखना गलत है।
- संस्कृत में रेफ से संयुक्त व्यंजन का द्वित्व होता भी है और नहीं भी होता। कर्त्तव्य, कर्तव्य, अर्द्ध, अर्ध, आय्र्य, आर्य, भाय्र्या, भार्या आदि दोनों रूप मानक हैं। हिन्दी में भी ये दोनों रूप शुद्ध स्वीकारे गये हैं परन्तु निम्नलिखित शब्दों का द्वित्व अलग नहीं किया जा सकता : महत्त्व, तत्त्व, उज्ज्वल, निस्संदेह, निश्शंक ही शुद्ध रूप हैं; महत्व, तत्व, उज्वल, निसंदेह, निशंक नहीं।
- हिन्दी में नया, गया, लाया तो ठीक माने जाते हैं। पर उनके स्त्रीवाची रूप कभी नयी, गयी, लायी लिखे जाते हैं, तो कभी नई, गई, लाई। वास्तव में आई और आयी, लाई और लायी, भाई और भायी में फर्क होता है। देखिए :
आई मा (मराठी में)
आयी आया क्रिया का स्त्रीलिंग रूपलाई धान का खिला हुआ रूपलायी लाया का स्त्रीलिंग रूपभाई बन्धुभायी भाया क्रिया का स्त्रीलिंग रूपइस प्रकार ‘बनिए’ ओर ‘बनिये’ में भी अन्तर करना चाहिए। ‘बनिए’ बनना क्रिया का रूप है जबकि ‘बनिये’ बनिया का बहुवचन है। जिन शब्दों के एकवचन में य हो, उनके बहुवचन और स्त्रीलिंग रूपों में भी य ही होना चाहिए।- सम्बोधन में बहुत से लोग देशवासियों, भाइयों जैसे प्रयोग करते हैं। यह अमानक हैं। सम्बोधन बहुवचन में ‘ओ’ का प्रयोग होना चाहिए, ‘ओं’ का नहीं।
- हिन्दी में जन, गण, वृन्द जैसे शब्द बहुवचनवाची है अत: गुरुजन, विधायक गण, पक्षी वृन्द ही सही हैं. गुरुजनों, विधायक गणों पक्षी वृन्दों जैसे रूप आमानक हैं।
- हिन्दी के कारक चिह्नों में सबसे अधिक कठिनाई ‘ने’ को लेकर होती है। मानक हिन्दी में ‘ने’ का प्रयोग कर्ता-कारक में सकर्मक धातुओं से बने भूतकालिक क्रिया रूपों के साथ होता है। जैसे :
- मैंने कहा।
- राम ने रावण को मारा
- मैंने गाना गाया
किन्तु निम्न वाक्यों में ‘ने’ का प्रयोग अमानक है-
- मैं ने हँसा।
- राम ने बहुत रोया।
- मानक हिन्दी में विशेषण का लिंग, संज्ञा के लिंग के अनुरूप बदलने की परिपाटी नहीं है। संस्कृत में सुन्दर बालक किन्तु सुन्दरी बालिका जैसे प्रयोग प्रचलित है। हिन्दी में हम सुन्दर लड़की और सुन्दर लड़का कहते हैं। वास्तव में हिन्दी में संज्ञा के लिंग के अनुरूप विशेषण का लिंग नहीं बदला जाना चाहिए।
- निश्चयवाचक अव्यय के रूप में हिन्दी में ‘न’, ‘नहीं’ और ‘मत’ मानक हैं, ‘ना’ नहीं। इस तरह के वाक्य ठीक नहीं हैं- ‘ना वह बैठा और ना ही उसने बात की।’
वास्तव में भाषा के मानकीकरण की प्रक्रिया एक लम्बी प्रक्रिया है। अत: जिन शब्दों, अभिव्यक्तियों और वाक्य रूपों का मानकीकरण हो चुका है, उनका पालन करना चाहिए।