- वर्णानुक्रम- लेखक और कवियों का परिचय उनके नाम के वर्णों के क्रम के अनुसार ( गार्सा द तासी, शिव सिंह सेंगर)
- कलानुक्रमी -लेखक और कवियों का परिचय उनके जन्मतिथि तथा ऐतिहासिक काल के क्रम के अनुसार (जार्ज गिर्यसन, मिश्र बन्धु)
- वैज्ञानिक -पूर्णतः तटस्थ रहकर तथ्यों का संकलन करके व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करना | यह पद्धति भी दोषपूर्ण है क्योंकि इतिहास लेखन तथ्यों को ही नहीं वल्कि व्याख्या और विश्लेषण की भी मांग करता है| अतः विश्लेषण अनिवार्य है |
- विधेयवादी- सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण | तेन महोदय दी गई है| इसे तीन शब्दों में बांटा गया
हिंदी के प्रमुख ग्रंथकार
गार्सा द तासी– फ्रेंच विद्वान, रचना-इस्त्वार द ला लितरेत्युर एन्दुई ऐन्दुस्तानी- दो भाग-प्रथम (प्रकाशन 1839), द्वितीय भाग (प्रकाशन 1847)
- इतिहास लेखन परम्परा का प्रथम ग्रन्थ होने का गौरव प्राप्त
- वर्णानुक्रम पद्धति का प्रयोग
- हिन्दू और उर्दू के कवि एकसाथ
- 783 कवियों/लेखकों का वर्णन उनमें से 72 हिंदी के
- इसमें कालविभाजन की त्रुटी
शिव सिंह सेंगर-रचना=शिव सिंह सरोज(1883)
- लगभग 1 हजार कवियों का वर्णन
- अधिकांश तथ्य अविश्वनीय
- किवंदंतियों के आधार पर कवियों का रचनाकाल और जन्मकाल
- परवर्ती इतिहासकारों के लिए यह ग्रन्थ मुख्य आधार रहा
सर जार्ज गिर्यसन– रचना= द मार्डन वर्नाक्यूलर लिटरेचर आफ हिंदुस्तान, प्रकाशन- एशियाटिक सोसाइटी आफ बंगाल
- कुछ विद्वानों ने इसे प्रथम ग्रंथ माना है
- यह ग्रन्थ 11 अध्यायों में विभक्त, प्रत्येक अध्याय विशेष काल खंड का सूचक
- 952 की जीवनी तथा काव्य परिचय
- गार्सा और सेंगर की सामग्री का प्रयोग करते हुए प्रमाणिक तथ्यों का प्रयास
- इसमें केवल हिंदी कवि
- कालक्रमानुसार कवियों/लेखकों का वर्णन
मिश्र बंधु-(कृष्ण बिहारी मिश्र, शुकदेव बिहारी)-रचना=मिश्रबंधु विनोद (चार भाग-तीन भाग(1913), चौथा (1914)
- रचना 8 खण्डों में कवियों के परिचय और साहित्य के अनुसार विभाजित
- पांच हजार कवियों का वर्णन
- शुक्ल ने इसी के आधार पर रीतिकाल के कवियों का परिचय लिखा है
- पहली बार काल विभाजन का समुचित प्रयास
- काव्य समीक्षा के परम्परागत सिद्धांतों के आधार पर
आचार्य रामचंद्र शुक्ल-हिंदी शब्द सागर की भूमिका में लिखा =हिंदी साहित्य का इतिहास(1929)
- युगीन परिस्थितियों के अनुसार साहित्यिक प्रवृत्तियों के विकास का वर्णन
- प्रत्यके कवि की रचना के साहित्यिक पवैशिष्ट्य पर आलोचनात्मक मत प्रस्तुत किया
- जनता की चित्तवृत्तियों को काल विभाजन का आधार बनाया
- 1900 वर्षों के इतिहास का लोकप्रिय कालविभाजन व काल नामकरण =चार खंड
- आदिकाल (वीरगाथा काल),
- पूर्वमध्यकाल (भक्तिकाल), निर्गुण-सगुण ( निर्गुण=ज्ञानाश्रयी, प्रेमाश्रयी) (सगुण= राम भक्ति, कृष्ण भक्ति)
- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल), (रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध, एवं रीतिमुक्त)
- आधुनिक काल (गद्यकाल)
- अपभ्रंश साहित्य को हिंदी से अलग माना है
- सिद्ध और नाथ साहित्य को साम्प्रदायिक कहकर साहित्य क्ष्रेत्र से बाहर रखा है
ड़ा० राम कुमार वर्मा–हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास– दो भागों में प्रकाशित(पहला=1938में, दूसरा अभी तक अधूरा होने के कारण अप्रकाशित)
- शुक्ल के वीरगाथा काल को चारणकाल कहा है
- अपभ्रंश की अत्यधिक सामग्री को अपने ग्रन्थ में शामिल किया है
- स्वयंभू को हिंदी का पहला कवि माना है
हजारी प्रसाद द्विवेदी-पुस्तकें (हिंदी साहित्य की भूमिका, हिंदी साहित्य का उद्भव एवं विकास, साहित्य का आदिकाल)
- शुक्ल के वीरगाथा काल को आदिकाल कहा है
- शुक्ल के भक्तिकाल की भूमिका का खंडन किया
- कबीर पर सिद्धो और नाथों का प्रभाव दर्शाया
- आदिकाल पर अलग से निबंध लिखा जिसमें भक्तिकाल पूर्वर्ती नाथ, सिद्ध साहित्य का सहज विकसित रूप है| सूफी काव्य को संस्कृत, प्राकृत,व अपभ्रंश की काव्य परम्पराओं पर आधारित मानते हैं |
गणपतिचन्द्र गुप्त-रचना= हिंदी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास 1965 (दो खंड)
- विकासवादी सिद्धांतों के आधार पर हिंदी साहित्य की नविन व्याख्या
- हिंदी साहित्य को तीन कालखंडों में विभाजित किया है-प्रारम्भिक काल, मध्यकाल और आधुनिक काल
- शुक्ल की अनेक मान्यताओं का खंडन करते हुए अपनी मान्यताओं का तर्कपूर्ण ढंग से स्थापित किया है