हिंदी
खड़ी बोलिसे आधुनिक मानक हिंदी का विकास हुआ है | खड़ी बोली का विकास 19 वीं शताब्दी में हुआ |सबसे पहले अमीर खुसरो ने हिंदी कड़ी बोली में रचना की जिसे निम्न दोहा दर्शाता है-
गोरी सोये सेज पर, मुख पर डाले केश | चल खुसरू घर अपने, रेन भई चहूँ देश ||
मध्यकाल में ब्रजभाषा और अवधी साहित्यिक भाषाएँ थी लेकिन जनसम्पर्क के लिए हिंदी का प्रयोग होता था| बाद में भारतेंदु, द्विवेदी, प्रेमचंद, शुक्ल, त्रिपाठी निराला आदि ने इसके विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया | ब्रिटिश काल में दयानंद सरस्वती, गाँधी तिलक आदि ने हिंदी के प्रयोग से इसे सशक्त किया | इस प्रकार हिंदी का महत्त्व उत्तरोत्तर बढ़ता गया स्वतंत्रता उपरांत यह राजभाषा के रूप में परिणित हो गई | हिंदी दूसरी विदेशी भाषाओँ का भी प्रभाव दिखाई देता है जैसे- अरबी, फारसी, अंग्रेजी आदि | आज हिंदी अन्तर्राष्ट्रीय रूप में स्वीकृत हो चुकी है |फिजी, मारीशस, कनाडा, गुआना आदि देशों एन हिंदी के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं |
उर्दू
यह फारसी लिपि में लिखी जाती है |इसका जन्म भी खड़ी बोली से ही हुआ है| इसीलिए विद्वान हिंदी और उर्दू को खड़ी बोली की बेटियाँ मानते हैं| ब्रिटिशकाल से पहले यह हिन्दू-मुसलमानों दोनों की भाषा थी परन्तु ब्रिटिशकाल के दौरान साम्प्रदायिकता के कारण भाषाओँ का वर्गीकरण हो गया |उर्दू की प्रारम्भिक पुस्तक “बानो बहार” 18 वीं सदी मानी जाती है| उर्दू के प्रारम्भिक कवियों में इब्राहिम आदिलशाह, मुहम्मद कुली कुतुबशाह | रामधारी सिंह दिनकर उर्दू का जन्म दक्षिण भारत में मानते हैं | धीरे-धीरे अरबी फारसी और हिंदी के मेल से उर्दू का जन्म हुआ | उर्दू में अरबी फारसी और तुर्की शब्दावली की बहुलता है | उर्दू पाकिस्तान की राष्ट्र भाषा है |साहित्यिक दृष्टि से उर्दू का एक विशेष स्थान है |भारतीय संविधान में उर्दू एक स्वतंत्र भाषा के रूप में दर्ज है|
रेख्ता
इसका शाब्दिक अर्थ है गिरी हुई । फ़ारसी शब्दों को सरल करके बोलचाल की जो भाषा बनी उसे रेख्ता कहा गया है ।
दक्खिनी
इसे हिंदवी भी कहा जाता है ।तुग़लक़ द्वारा राजधानी बदलकर दक्षिण में जाने पर उत्तरी हिंदी भाषी लोगों का दक्षिण भाषी लोगों से सम्पर्क पर नई भाषा बनी जो दक्खिनी कहलाई । दक्खिनी शब्द का पहल प्रयोग 17 वीं शताब्दी में दिखाई देता है | शब्द का प्रयोग दक्षिण की भाषा के रूप में किया जाता है |भारत में मुस्लिमों के आने के बाद यह दक्षिण पथ दक्खिन कहलाया | इसका प्रयोग बीजापुर, गोलकुंडा, अहमदपुर बरार, मुंबई और मध्य प्रदेश तक होता है| यह कोई स्वतंत्र भाषा नहीं बल्कि खड़ी बोली का ही एक रूप है| गार्सा द तासी इसे हिंदी का एक रूप मानते हैं| उनका मानना है कि दक्षिण में हिन्दू मुसलमानों द्वारा प्रयोग के कर्ण यह दक्खनी कहलाई |गिर्यसन इसे हिन्दुस्तानी का एक रूप मानते हैं| इस पर दूसरी भारतीय भाषाओँ का भी प्रभाव दिखाई देता है|इसमें पर्याप्त साहित्य मिलता है| इसकी लिपि उर्दू के समान फारसी है इसे गूजरी भी कहा जाता है | 15 वीं से 18 वीं में इसे बहमनी वंश तथा अन्य राजाओं का भी आश्रय मिला | इसके प्रारम्भिक साहित्यकार- ख्वाजा बंदानवाज गेसूदराज (रचना-मिराजुल आशिकीन)
अन्य साहित्यकार-शाह मीराजी, गुलाम अली, सैयद मुहम्मद हुसैनी, शाह बुरहानुद्दीन, अब्दुल्ला बेलूरी, शेख असरफ, निजामी
हिंदुस्तानी
हिन्दुस्तानी शब्द का प्रयोग एक शैली के लिए होता है| इसाई पादरी, यूरोपीय यात्री और अंग्रेजकालीन कर्मचारी हिंदी से अधिक हिन्दुस्तानी शैली का प्रयोग करते थे | सन 1800 में फोर्ट विलियम कालेज की स्थापना केबाद वहाँ हिन्दुस्तानी विभाग की स्थापना की गई |फोर्ट विलियम कालेज के प्राचार्य जान गिल्क्राईट ने इसे ग्रामीण हिंदी और उर्दू दो रूपों में ग्रहण किया है| यहाँ हिन्दुस्तानी के नाम पर उर्दू की पढाई होती थी | ड़ा० सुनीति कुमार चटर्जी ने इसका प्रयोग काल 17 वीं शताब्दी स्वीकार किया है | ड़ा० भोला नाथ तिवारी ने 15 वीं शताब्दी से पहले माना है बाबर की आत्मकथा*तुजुके बाबरी* में हिन्दुस्तानी शब्द का प्रयोग किया गया है| हिन्दुस्तानी के प्रबल समर्थक और प्रचारक गाँधी जी द्वारा-हिन्दुस्तानी वह भाषा है जिसको उत्तर में हिन्दू और मुसलमान बोलते हैं , जो नागरी अथवा फारसी लिपि में लिखी जाती है| लेकिन उन्होंने 1935 के अधिवेशन में हिंदी की राष्ट्रीय भाषा घोषित कर दिया | इसके सैय्यद महमूद, ताराचंद,भगवान दास , जाकिर हुसैन आदि नेहिन्दुस्तानी आन्दोलन को आगे बढाया | कांग्रेस का समस्त कार्य हिन्दुस्तानी में ही होता था |