हारती जिंदगीयो और जीतती मौत को देखकर मन मे ऐसे कुछ विचार आ रहे हैं

क्यों अतिथि अध्यापक मौत को गले लगा रहे है

क्यो किसान गले मे फंदा लगा रहे है

क्यो हर तरफ टूटती चूड़िया बिलखते परिवार नजर आ रहे है

क्यो बेकसूर मासूम यतीम होते जा रहे है

क्यों खिलते चमन रूपी समाज कब्रगाह बनते जा रहे है

क्यों जिन्दगी ने इतनी जल्दी घुटने टेक दिए है मौत के सामने

क्यो इनसानों की अन्तरात्मा को गिद्द नोच नोच कर खा रहे है

क्यों सुनाई नही देती बेटी बीवी और माताओं की चीखे हुक्मरानो को

क्यों वे आक्रोश की दबी चिंगारियो को सुलगा रहे है

क्यो हताशा ऑर निराशा का घनघोर अंधेरा फैला है हर और

क्यो लोग जीवन ज्योति के दीपक को एक पल मे बुझा रहे है

संघर्ष संयम शांति सद्भाव के जज्बे को छोडकर

क्यो लोग अपनो को खून के आँसू रुला रहे है

जिंदगी की जंग हार जाएगे सभी यह निश्चित है

पर क्यो जंग से पहले ही हथियार गिरा रहे है

एक दो रास्ते बंद होने से जीवन की सब राहे बंद नही हुआ करती

फिर क्यों लोग बेबस हो पत्थरो के सामने गिड़गिड़ा रहे है

जिंदगी जिंदा दिली का नाम है सब कहते है

फिर क्यों लोग इन पंक्तियो का अर्थ भूलते जा रहे है

आत्महत्या एक बुजदिली बेवकूफी कायरता व उस खुदा की रहमत का अपमान है

फिर भी लोग क्यों इस रास्ते को अपना रहे है

माना परिस्थितियो हालातो मजबूरियो ने जीवन मे निराशा भर दी बहुत

फिर क्यों यही इंसान मुश्किलो को चीर आसमान मे उडान भर रहे है

जब रूबरू है सब इस सच्चाई से कि वापिस लौट कर कभी आना नही हमे

फिर भी क्यों लोग उस खुदा की इबादत से पहले नमाज छोड़कर जा रहे है

जीओ भरपूर दोस्तो हालातो का करो सामना दिलेरी से

क्यो इस अनमोल दौलत को कोडियो के मोल लुटा रहे है

गैर खुद के लिए जीने की हसरत खत्म हो गई हो तुम्हारी

तो क्यो नही किसी और के अंधेरे जीवन मे खुशी के दीपक जला रहे है

इतिहास आत्महत्या करने वालो की नही दूसरो पर कुर्बान होने वालो की कहानियो से भरा पडा है

देखो आज भी शूरवीर योद्धा विद्वान सज्जन मानवता की श्रेष्ठता शिखर ध्वज फहरा रहे है——

द्वारा-सुखविन्द्र

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