• जन्मकाल=1478-1583 (आधार-भक्तमाल (नाभादास), चौरासी वैष्णव की वार्ता (गोकुल नाथ) बल्लभ दिग्विजय (यदुनाथ))
  • ये वल्ल्भाचार्य से दस दिन छोटे थे |
  • जन्म स्थान=सीही (दिल्ली के निकट) सारस्वत ब्राह्मण परिवार में
  • गुरु= 1509-10 में महाप्रभु बल्लभाचार्य से भेंट के बाद उनके शिष्य बनकर पारसोली गाँव में रहने लगे
  • वे जन्मांध थे या बाद में अंधे हुए इसको लेकर विवाद है
  • पूरनमल खत्री 1519 में गोवर्धन पर्वत पर श्रीनाथ जी के मंदिर की स्थापना करके कीर्तन सेवा सूरदास को सौंप दी |
  • सूरदास की तीन प्रमुख रचनाएँ=सूरसागर, सूर सारावली(1107 छंद) और साहित्य लहरी
  • साहित्य लहरी में सूरदास ने स्वयं को जायसी का वंशज माना है |
  • सूरसागर की कथा भागवत पुराण के दशम स्कंध से ली गई है | कृष्ण जन्म से लेकर मथुरा जाने तक की कथा
  • इसमें 4936 पद तथा 12 स्कंध हैं |
  • इसमें तीन भ्रमर गीतों की योजना की गई है |
  • श्रृंगार और वात्सल्य का सम्राट माना जाता है |
  • सूरदास की भक्ति पद्धति का मेरुदंड पुष्टिमार्ग है |
  • भ्रमरगीत इनका सर्वाधिक मर्मस्पर्शी एवं वाग्वैदग्ध्यपूर्ण अंश है |
  • इसमें उद्धव-गोपी संवाद के माध्यम से निर्गुण का खंडन और सगुण का मंडन किया गया है |
  • भ्रमरगीत में 700 पद हैं |
  • भ्रमरगीत को उपालम्भ काव्य और शुक्ल ने ध्वनिकाव्य कहा है |
  • सूरदास की रचनाओं का प्रथम सम्पादन कलकत्ता में सन 1841 ई ० में रागकल्पद्रुम नाम से हुआ |
  • आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने सूरदास को ब्रजभाषा का प्रथम कवि कहा है |
  • ब्रजभाषा के सशक्त कवि हैं |
  • सूरदास की मृत्यु के बारे में विट्ठलदास ने कहा है- पुष्टिमार्ग कौ जहाज जात है जाय कछू लेनो होय सो लेउ ||
  • सूरदास का अंतिम पद= खंजननयन रूप रस माते | अति से चारा चपल अनियारे पल पिंजरा न समाते ||

भ्रमरगीत के कुछ पद

  • निर्गुण कौन देस को वासी ?
  • प्रीटी करि दीन्हीं गरे छुरी |
  • उर में माखन चोर अड़े |
  • अँखियाँ हरि दरसन की भूंखी |
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