संज्ञा- वह पद जो किसी व्यक्ति, वस्तु, भाव, द्रव्य, समूह,या जाति के नाम को व्यक्त करता है |

वाक्य निर्माण से पूर्व संज्ञा पद प्रातिपदिक कहलाता है किन्तु कारक के अनुसार विभक्ति या परसर्ग से जुड़कर यही प्रातिपदिक संज्ञापद कहलाता है |

भेद- व्यक्तिवाचक, जातिवाचक संज्ञा (समूहवाचक , द्रव्यवाचक), भाववाचक

सर्वनाम-जो शब्द संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होते हैं , इन्हें सार्वनामिक कहते हैं ।

भेद= पुरूषवाचक सार्वनामिक (प्रथम पुरुष, मध्यम पुरुष, उत्तम पुरुष)

संबंधवाचक

निश्चयवाचक

अनिश्चयवाचक

निज वाचक

विशेषण-वह विकारी पद जो किसी संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताता है यह सामान्यता संज्ञा की विशेषता सूचित करता है पर जब सर्वनाम संज्ञा का स्थानापन्न बनता है तो वही विशेष्य हो जाता है।

विशेषण के  भेद

 गुणवाचक विशेषण

सार्वनामिक विशेषण

परिमाणवाचक विशेषण= निश्चित,अनिश्चित

संख्यावाचक विशेषण= निश्चित,अनिश्चित

प्रविशेषण : वे शब्द जो बिशेशन की भी विशेषता बताते हैं, उन्हें प्रविशेषण कहते है| उदाहरण- ऊँचा काला घोड़ा किसका है?

अन्य विशेषताएँ

उद्देश्य विशेषण

विधेय विशेषण

क्रिया-क्रिया भाषा का वह विकारी पद है जिसके माध्यम से कुछ करना या होना सूचित होता है।

भेद = अकर्मक, सकर्मक

संयुक्त क्रिया– जहाँ एक से अधिक क्रियाएं एक साथ प्रयुक्त होती हैं | इसके इसके भेद निम्न हैं-

मुख्य क्रिया = राम तेज़ी से चल रहा है । चलना

संयोजी क्रिया=रहा है

रंजक क्रिया =गिर पड़ना, फेंक देना

सहायक क्रिया=है

समापिका= यह क्रिया वाक्य के अंत में विधेय पक्ष के भीतर आती है । राम अयोध्या जाएगा ।

असमापिका= यदि कोई क्रिया वाक्य के विधेय पक्ष के अंतिम हिस्से की बजाय कहीं ओर आ जाए तो वह असमापिका क्रिया कहते हैं ।ऐसी क्रियाओं को कृदंतीय क्रिया भी कहते हैं । यह क्रियाएँ चार प्रकार के प्रत्ययों से निर्मित होती है

ता/ते/ती= चढ़ता

ना/ने/नी= सुना

आ/ई/ए= बैठा

कर= बैठकर

प्रेरणार्थक क्रिया= खुद न करके दूसरों से करवाना

नामधातु क्रिया= हाथ= हथियाना

कारक व्यवस्था-अर्थ= वह संरचना जिसमें कोई संज्ञा पद या सार्वनाम पद किसी वाक्य में निश्चित सम्बंध से युक्त स्थान ग्रहण करता है ।

कारक

कर्ता

कर्म

करण

संप्रदान

अपादान

सम्बन्ध

अधिकरण

सम्बोधन

वाक्य रचना में प्रायः आठ कारकों का क्रम निश्चित है –

सम्बोधन-कर्ता-अधिकरण-सम्बन्ध-अपादान-सम्प्रदाय-करण-कर्म

लिंग-शब्द के जिस रुप से किसी के स्त्री या पुरुष होने का बोध हो तो उसे लिंग कहते हैं । इसके दो भेद हैं पुल्लिंग, स्त्रीलिंग

संस्कृत= में तीन लिंग (2+नपुसंकलिंग )

अंग्रेज़ी = चार लिंग (3+उभयलिंग)

वचन-शब्द के जिस रूप से किसी के एक या अनेक होने का बोध हो , उसे वचन कहते है ।

भेद = एकवचन , बहुवचन

Scroll to Top