एक दूसरे का ख्याल छोड़कर दिन- रात खो गए ऐसे,

मानो उन पर असर कर गया हो कोई किसी का मन्त्र l

अब तो आपस की बातों में भी दिलचस्पी कम हो रही है,

जब से पुस्तक छोड़कर हाथों में आ गया दूरसंचार यन्त्र l

घर में कोई भी रिश्तेदार आए या चाहे कोई भी घनिष्ठ मित्र,

घर में किसी के पास समय नहीं व्यस्त है खीचने में स्वचित्र

सब की शांति भंग हो रही है, मानो कोई हो रहा हो संग्राम,

जब से मानव के जीवन आ गए हैं फेसबुक एवं इन्स्टाग्राम l

युवा पीढ़ी को तो इसमें ही दिखाई देने लगा है  निराकार,

पढाई को छोड़ कहते हैं कि हमें रोजगार नहीं देती सरकार l

छोटे बच्चों से दूर रखना कहीं, पड़े ना उनको इसकी  लत,

अपने घर में ऐसी लाईलाज बीमारी को ही मत देना दावत

           

प्रवीण कुमार हिंदी प्राध्यापक

रा० आ०सं०व०मा०विद्यालय, शहजादपुर

(अंबाला)  हरियाणा

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