प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी रानी सारन्धा सन 1950 में जमाना पत्रिका में प्रकाशित हुई थी | यह कहानी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित है |कहानी मेंबुन्देलखंड के अनिरुद्ध सिंह की आन-बान  और शौर्य की गाथा का बखान किया गया है |सारन्धा अनिरुद्ध सिंह की बहन  और ओरछा के प्रतापी राजा राजाचम्पतराय की पत्नी थी |वह एक स्वाभिमानी राजपूत वीरांगना थी |उसने अपने भाई और पति को हमेशा देशभक्ति , स्वाभिमान और आत्मगौरव का पाठ पढाया | एक बार सारन्धा द्वारा अपने भाई को युद्ध से अविजित लौट आने पर राजपूत आन का पाठ पढाया तो अनिरुद्ध की पत्नीशीतला देवी ने उसे कहा कि क्या वह अपने विवाह के बाद अपने पति को भी ऐसी ही युद्ध में वीरता के लिए उत्साहित करेगी तो उस पर सारन्धा द्वारा यह कहा जाना कि वह अपने पति को स्वयं छाती में चाक़ू से मार देगी, इस कहानी का मुख्य विषय है या निष्कर्ष है | जब राजा चम्पतराय ने मुग़ल बादशाह शाहजहाँ की अधीनता स्वीकार कर ली और अपने क्षेत्र ओरछा को छोड़कर सुखपूर्वक जीवन जीने लगा तब यह बात सारन्धा को बिलकुल भी अच्छी नहीं लगी | आखिर उसने अपने पति को बुन्देला आन-बान  शान की याद दिला दी और बादशाह की गुलामी छोड़ने पर विवश कर दिया | शाहजहाँ के विरुद्ध युद्ध में वह मुराद का साथ देता है और बड़ी ही चालाकी से उसकी सेना को नदी पार करवाता है | अंत में उन्हें शाहजहाँ और उसके प्रिय पुत्र दाराशिकोह पर विजय प्राप्त हो जाती है | युद्द के मैदान में बादशाही सेनापतिवली बहादुर खान का एराकी जाति का घोड़ा सारन्धा को मिल जाता है जोकि बहुत ही शानदार होता है | इसी घोड़े के कारण चम्पतराय को औरंगजेब से दुश्मनी मोल लेनी पड जाती है | अंत में घोड़ा न लौटाने के कारण चम्पतराय को युद्ध का सामना करना पड़ता है | इसी घोड़े के लिए सारन्धा अपने प्रिय पुत्र छत्रसाल को भी कुर्बान कर देती है | अंत में भागते हुए दुश्मनों से घिर जाने पर चम्पतराय के कहने पर सारन्धा अपने पति के सीने पर तलवार का प्रहार करके उसे बादशाह के गुलाम बनने से मुक्ति दिला देती है ओर अंत में स्वयं भी खुद को तलवार से मार डालती है | इस प्रकार वह अपनी भाभी को कहे गए वचनों को पूरा करते हुए बुन्देला शान का परिचय देती है | पात्रों चरित्र- चित्रण की दृष्टि से यह से यह एक श्रेष्ट कहानी है | कहानी की भाषा सहज, सरल, स्वभाविक, स्पष्ट और हृदयग्राही है |

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