पूरा नाम | भीष्म साहनी |
जन्म | 8 अगस्त, 1915 ई. |
जन्म स्थान | रावलपिंडी |
माता पिता | पिता- हरबंस लाल साहनी, माता- लक्ष्मी देवी |
मृत्यु | 11 जुलाई, 2003 |
यादगार कृतियाँ | ‘मेरी प्रिय कहानियाँ’, ‘झरोखे’, ‘तमस’, ‘बसन्ती’, ‘मायादास की माड़ी’, ‘हानुस’, ‘कबीरा खड़ा बाज़ार में’, ‘भाग्य रेखा’, ‘पहला पाठ’, ‘भटकती राख’ आदि। |
श्री भीष्म साहनी का जन्म 1915 में रावलपिंडी के मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ. उनकी प्रारम्भिक शिक्षा दीक्षा वहीँ हुई. तत्पश्चात इन्होने लाहौर विश्वविद्यालय से अंग्रेजी विषय में एम ए की परीक्षा उतीर्ण की. पंजाब विश्वविद्यालय से पीएचडी की. भारत विभाजन की त्रासदी को इन्होने देखा ही नहीं भोगा भी था.
जिसका जीवंत चित्रण आगे चलकर उन्होंने तमस उपन्यास में किया हैं. भारत में विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े रहे. आपने अनेक विदेशी यात्राएं की. सात वर्ष तक विदेशी भाषा प्रकाशन गृह मास्कों में कार्य किया. वहां रूसी भाषा का गहन अध्ययन किया एवं अनेक पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद किया.
भीष्म साहनी पर कुछ हद तक मार्क्सवादी विचारधारा का प्रभाव था. भारत लौटने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के अधीन दिल्ली कॉलेज में अध्यापन कार्य किया. साहनी का परिवार कला एवं साहित्य की सेवाओं से जुड़ा रहा. आपके बड़े भाई बलराम साहनी हिंदी सिनेमा के वरिष्ठ तथा लोकप्रिय अभिनेता रहे.
बलराम साहनी ने हिंदी सिनेमा में भारतीय आत्मा को जीवंत किया हैं. विभिन्न फिल्मों में इन्होने मध्यमवर्गीय परिवार के मुखियां का रोल अदा कर लोगों की सहानुभूति बटोरी है और एक आदर्श उपस्थित किया हैं. भीष्म साहनी नई कहानी के आंदोलन कर्ताओं में से एक हैं. अभी कुछ समय पूर्व ही उनका निधन हुआ हैं.
भीष्म साहनी की कृतियाँ एवं कहानियाँ
भीष्म साहनी एक कुशल कथाकार विचारक एवं उपन्यासकार रहे हैं. आपने अनेक कहानियाँ और तीन उपन्यास लिखे हैं. स्वत्न्त्रयोत्तर भारत में बढ़ती बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार, नेताओं की अवसरवादिता पर तीव्र कटाक्ष किया हैं.
- प्रमुख कहानी संग्रह – भटकती राख, भाग्य रेखा, पहला पाठ आदि.
- उपन्यास – झरोखे, कड़िया, तमस.
उपन्यास-कड़ियाँ, ‘तमस’, ‘बसन्ती’, ‘मैयादास की माड़ी’, ‘कुंतो’, ‘नीलू नीलिमा नोलोफर’ ।कहानी संग्रह-भाग्य रेखा’, ‘पटरियाँ’, ‘वाड्चू’, ‘शोभायात्रा’, ‘निशाचर’, ‘पाली’ ।नाटक-‘हानूश’, ‘ कबिरा खड़ा बाजार में, ‘माधवी’, ‘मुआवजे’ ।
निबन्ध-संग्रह-अपनी बात। आत्म कथा-आज के अतीत।
पुरस्कार तथा सम्मान
भीष्म साहनी को उनकी साहित्यिक और वैचारिक ऊँचाइयों के कारण अनेक सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए। जैसे- -
भाषा विभाग, पंजाब द्वारा 1975 में ‘शिरोमणि’ लेखक पुरस्कार;
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‘अफ्रोऐशियाई लेखक संघ’ द्वारा 1980 में ‘लोटस’ पुरस्कार,
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1980 में ‘हिंदी-उर्दू साहित्य पुरस्कार’ लखनऊ से तथा
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सन् 2000 में ‘हिन्दी अकादमी’, दिल्ली द्वारा ‘शलाका सम्मान’।
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‘तमस’ उपन्यास को 1976 में साहित्य अकादमी,
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‘बसन्ती’ उपन्यास को 1985 में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान और
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‘मैया दास की माड़ी’ को 1990 में हिंदी अकादमी दिल्ली से पुरस्कृत किया गया।
- 1975 में उत्तरप्रदेश सरकार ने ‘तामस’ के लिए उन्हें सम्मानित किया था।
- उनके नाटक ‘हनुष’ के लिए मध्य प्रदेश कला साहित्य परिषद् अवार्ड से सम्मानित किया गया।
- 1975 में एफ्रो-एशियन लेखको के एसोसिएशन द्वारा लोटस अवार्ड दिया गया।
- 1983 में सोवियत लैंड नेहरु अवार्ड दिया गया।
- अंततः साहित्य में उनके योगदान को देखते हुए 1998 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
- शलाका सम्मान, नयी दिल्ली, 1999
- मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, मध्य प्रदेश, 2000-01
- संगीत नाटक अकादमी अवार्ड, 2001
- सर्वोत्तम हिंदी उपन्यासकार के लिए सर सैयद नेशनल अवार्ड, 2002
- 2002 में भारत के सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार साहित्य अकादमी फ़ेलोशिप से सम्मानित किया गया।
- 2004 में राशी बन्नी द्वारा किये गये नाटक के लिए इंटरनेशनल थिएटर फेस्टिवल, रशिया में उन्हें कॉलर ऑफ़ नेशन अवार्ड से सम्मानित किया गया।
- 31 मई 2017 को भारतीय डाक ने साहनी के सम्मान में उनके नाम का एक पोस्टेज स्टेम्प भी जारी किया है।
देश के बंटवारे और उसके बाद होने वाले अमानवीय नर-संहार तथा पशुतापूर्ण व्यवहार के आधार पर लिखे गए ‘तमस’ उपन्यास से वे अत्यधिक चर्चा में आए। रंगमंच, नाटक और फिल्म जगत से जुड़े होने के कारण उनकी अभिनय कला और रंगमंच कला को भी हिंदी जगत ने खूब सराहा। 11 जुलाई, सन् 2003 को उनकी मृत्यु हो गयी।
भीष्म साहनी की भाषा शैली
भीष्म जी की भाषा प्रायः आम बोलचाल की खड़ी बोली हिंदी रही है। किंतु रचना की विषयवस्तु के अनुरूप संस्कृत की तत्सम शब्दावली के साथ-साथ उर्दू और अंग्रेजी के प्रचलित शब्दों के प्रयोग द्वारा भाषा को लोकप्रिय और समर्थ बनाया गया है।
उनकी शैली में विवेचना, विवरण, व्यंग्य और आक्रोश प्रायः देखा जा सकता है। इससे विषयवस्तु की भीतरी वास्तविकता को समझने में देर नहीं लगती।