- भक्ति की प्रधानता के कारण इसे भक्तिकाल कहा जाता है |गिर्यसन महोदय ने इसे धार्मिक पुनर्जागरण कहा है |
- भक्ति का सर्वप्रथम उल्लेख “श्वेताश्वेतर उपनिषद” में मिलता है |
- गिर्यसन ने इसे हिंदी साहित्य का स्वर्णयुग कहा है|
- रामविलास शर्मा ने-लोक जागरण काल
- हजारी प्रसाद द्विवेदी-लोक जागरण
नामकरण
साहित्यकार | समयावधि |
मिश्रबंधु | संवत् 1444-1560 विक्रम पूर्व माध्यमिक संवत् 1561-1680 विक्रम प्रौढ़ माध्यमिक |
आचार्य रामचंद्र शुक्ल | संवत् 1375-1700 विक्रम |
ड़ा० नागेन्द्र | संवत् 1350-1650 ईस्वी |
ड़ा० गणपति चन्द्र गुप्त | संवत् 1350-1500 ईस्वी |
ड़ा० राम कुमार वर्मा | संवत् 1375-1700 विक्रम |
राजनीतिक परिस्थिति-1326-1526 तक ( तुगलक वंश, सैयद वंश, लोदी वंश, खिज्र वंश और मुग़ल=बाबर, अकबर, हुमांयू, जहाँगीर, शाहजहाँ, औरंगजेब आदि) भक्तिकाल की हिन्दू-मुस्लिम में द्वेष बढ़ गया था | सम्राट अधिकतर धार्मिक सहिष्णु ना निकले । भक्तिकाल के पहले चरण में तुग़लक़ से ख़िज़्र वंश तक का शासन रहा । भक्तिकाल के दूसरे चरण में मुग़ल शासकों ने शासन किया । |
सामाजिक परिस्थिति– सती प्रथा, छुआछूत, वर्णव्यवस्था, पाखंड, आडम्बर, महिलाओं को दूसरा दर्जा , हिंदू मुसलमानों में वास्तुकला, चित्रकला व संगीत में आदान-प्रदान होने लगा था । |
धार्मिक परिस्थिति-बौद्ध धर्म के हीनयान ओर महायान के बाद आए वज्रयान से सिद्धो का उदय हुआ । महायान संप्रदाय ने जनता के निम्न वर्ग को जादू-टोना, अभिचार, तंत्र-मंत्र दिखाकर प्रभावित किया । ओर धर्म के नाम पर वाममार्ग को अपना कर मद्य, मांस, मैथुनम मुद्रा को ग्रहण कर लिया ।नाथों ओर सिद्धांत ने कर्मकांड के स्थान पर गुरु को महत्त्वपूर्ण दिया।इसी ने धार्मिक भूमि को तैयार किया । बौद्ध धर्म की विकृतियों के विरुद्ध शंकराचार्य ने अद्वैतवाद का प्रचार किया । विष्णु के अवतारों की भक्ति ने लोगों को आकृष्ट किया । प्रेम मार्ग पर आधारित सूफ़ी सम्प्रदाय की जड़ें पनपने लगी ।आगे जाकर यह कई सम्प्रदायों में विभक्त हो गया । |