बूढी काकी प्रेमचंद द्वारा द्वारा कहानी है | यह कहानी सन् 1921 में मर्यादा पत्र में प्रकाशित हुई | यह सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पृष्ठभूमि पर आधारित कहानी है | इसमें समाज की ज्वलंत और वृद्ध समस्या का यथार्थ चित्रण है | कहानीकार ने इस कहानी के माध्यम से कथानक का सर्जन करते हुए मानव की स्वार्थी एवं कृतघ्नतापूर्ण मानसिकता का चित्रण किया है | बूढ़ी काकी वृद्धावस्था में अपनी सारी जायदाद अपने भतीजे बुद्धिराम के नाम कर देती है जो ज़मीन जायदाद हड़पने के बाद भी कर्त्तव्य विमुख होकर बूढ़ी काकी को भूखा तो रखता ही है अपमानित भी करता है| लेखक में बूढ़ी काकी के माध्यम से समाज में हो रही वृद्धों की उपेक्षित अवस्था को चित्रित किया है और समाज को उनके प्रति मानवता का व्यवहार करने के लिए प्रेरित किया है | कहानी में बूढी काकी के अतिरिक्त अन्य पात्र हैं -बुद्धी राम जो अत्यंत लालची चालाक और स्वार्थी प्रवृति का है| उसकी पत्नी रूपा जो तीखे स्वभाववाली लेकिन भगवान से डरने वाली है| कहानी में बुद्धि काकी के पति व पुत्र जीवित नहीं हैं | वे सब मर चुके हैं | उसका भतीजा बुद्धिराम ही अब उसकी सब सम्पत्ति का मालिक है जिसकी वार्षिक आय डेढ़-दौ सौ रूपये से अधिक है | कहानी में काकी चीख मारकर रोती थी जिसका मतलब था कि वह सिर्फ खाने के लिए ही रो रही होगी | एक दिन बुद्धिराम के बेटे के तिलक के अवसर पर घर में दावत थी जिसमें पूड़ियों ओर कचौड़ियों की सुगंध से काकी अपने कमरे से बाहर उकडूं बैठकर हाथों के बल सरकते हुए चली जाती है |तभी रूपा उसे वापिस भेज देती है की अभी तो मेहमानों के लिए भी भोजन शुरू नहीं हुआ | काफी देर बाद काकी दौबारा पूड़ियों के लिए वापिस अपने कमरे से बाहर आती है तो इस बार बुद्धिराम उसे दोनों हाथों से पकडे हुए घसीटते हुए अँधेरी कोठरी में पटक देता है | काकी काफी देर तक खाने के बारे में सोचते हुए लेटी रहती है | रात को ज्यारह बजे लाडली ( बुद्धिराम की लड़की ) उसके लिए अपनी पुड़ियाँ लेकर आती है जिसे उसने न खाकर काकी के लिए बचाकर रखा हुआ था | लेकिन काकी के लिए वे पर्याप्त नहीं होती तो वह लाडली से उसे उस जगह ले जाने के लिए कहती है जहाँ मेहमानों ने भोजन किया था | रूपा भी बूढ़ी काकी के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती लेकिन जब बूढी काकी को झूठी पत्तलें बाहर अत्यंत मानवता युक्त सरल और स्वाभाविक है कि वह चाटती हुई देखती है तो उसका मन ग्लानि से भर जाता है | वह बूढ़ी काकी के प्रति अत्यंत सहानुभूति रखती है | वह सोचती है कि जिसके कर्ण हम भरपूर खाना खा पा रहे हैं उसे ही खाने के लिए तरसना पड रहा है | अंत में वह स्वयं एक थाली सजाकर काकी को खान देती है और अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगती है |कहानी की भाषा, पात्र देश-काल एवं विषय वस्तु के अनुरूप है यह भाषा सरल स्वाभाविक और जीवंत है| वर्णनपरक शैली है जो भावनात्मकता के साथ चित्रात्मक प्रवृत्ति को भी लिए हुए है | पढ़ते समय ऐसा लगता है कि जैसे सब कुछ सामने घटित हो रहा हूँ | कहानी का उद्देश्य समाज में रचे बसे बुद्धिराम जैसे लालची और स्वार्थी लोगों के प्रति ध्यान आकर्षित करना है तथा बूढ़ी काकी जैसी वृद्धों के प्रति मानवता का भाव जागृत करना है