इसके रचयिता नर पति नाल्ह हैं | यह आदिकाल की सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक है | यह कथा 120 छंदों और 4 कह्यन्हदों में विभक्त है एक प्रेम काव्य है जो संयोग व वियोग के गीतों से युक्त है |इसमें अजमेर के राजा बीसलदेव तृतीय तथा भोज परमार की पुत्री राजमती के विवाह, वियोग और पुनर्मिलन का वर्णन किया गया है | राजा बीसलदेव अपनी नवविवाहिता पत्नी राजमती के व्यंग्य से दुखी होअर उड़ीसा राज्य में जाकर 12 महीने तक नहीं लौटता है |इधर दुखी रानी एक पंडित के माध्यम से अपना सन्देश राजा को भेजती है |अंत में बीसलदेव के लौट आने पर दोनों का मिलन हो जाता है |

विशेष-

  • श्रृंगार रस के वियोग और संयोग का सुंदर और हृदयग्राही वर्णन किया गया है |
  • बारहमासा में प्रकृति का सजीव चित्रण किया गया है |
  • इसमें मेघदूत और सन्देश रास्क की सन्देश परम्परा भी मिलाती है |
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