बिहारी हिंदी का विकास मागधी अपभ्रंश से हुआ है। जिसे दो भागोंपूर्वी बिहारी और पश्चिमी बिहारी में विभाजित किया जा सकता है।

पूर्वी बिहारी की दो बोलियाँ हैं- मगही और मैथिली

पश्चिमी बिहारी के अंतर्गत भोजपुरी बोली आती है।

जार्ज ग्रियर्सन ने मगही को मैथिली की एक बोली मानते हैं।

वहीं सुनीति कुमार चटर्जी भोजपुरी को मैथिली और मगही से भिन्न मानते हैं और उसे अलग रखने के पक्ष में है। जार्ज ग्रियर्सन ने बिहारी बोली का प्रयोग करने वालों की संख्या लगभग 3 करोड़ 70 लाख मानी थी। ग्रियर्सन ने ही इस बोली को ‘बिहारी’ नाम दिया था।

बिहारी हिंदी की बोलियाँ

 

1. भोजपुरी

भोजपुरी बोली का विकास मागधी अपभ्रंश के पश्चिमी रूप से हुआ है।बोली के अर्थ में ’भोजपुरी’ का सर्वप्रथम प्रयोग 1789 ई. में हुआ यह शब्द काशी के राजा चेतसिंह के सिपाहियों की बोली के लिए प्रयुक्त हुआ है।बोलने वालों की संख्या की दृष्टि से हिन्दी की बोलियों में ’भोजपुरी’ का प्रथम स्थान है।बिहार राज्य का ’भोजपुर’ जनपद इस बोली का केन्द्र है। बिहार के भोजपुर नामक कस्बे के आधार पर इसका नाम भोजपुरी पड़ा।भोजपुरी का अधिकांश भूभाग उत्तर प्रदेश में और कुछ भाग बिहार प्रांत में है।भोजपुरी में लोकगीतों की समृद्ध मौखिक परम्परा रही है।भिखारी ठाकुर का विदेशिया नृत्य नाटक भोजपुरी बहुत लोकप्रिय है।लोककवि और नाटककार ‘भिखारी ठाकुर’ ने ’बिदेसिया’ सहित बारह नाटकों की रचना की। इन्हें भोजपुरी का ’शेक्सपियर’ कहा जाता है।महेन्द्र मिसिर के पूरबी लोकगीत, मुजरे और विवाह के विदाई गीत अत्यन्त लोकप्रिय हैं। ’’नदी नारे न जाओ श्याम पइंया परूँ’’ सदृश उनके कई गीत हिन्दी और भोजपुरी फिल्मों में व्यवहृत हुए है।भारत के बाहर मारिशस, सूरीनाम, त्रिनिदाद, गुआना, फिजी आदि में भोजपुरी बोलने वालों की संख्या अच्छी खासी है।
भोजपुर की स्थापना राजा भोज के वंशजों ने की थी। भोजपुरी के नामकर्ता रेमण्ड को माना जाता है।इसकी मुख्य लिपि नागरी लिपि है। कुछ लोग कैथी लिपि का प्रयोग भी किया करते थे। वहीं बही-खाते के लिए महाजनी लिपि का प्रयोग होता था।

जार्ज ग्रियर्सन ने इसके बोलने वालों की संख्या दो करोड़ चार लाख मानी है। 1971 की जनगणना के अनुसार भोजपुरी बोली (bhojpuri boli) बोलने वालों की संख्या 1.4 करोड़ थी। बोलने वालों की दृष्टि यह हिन्दी की सबसे बड़ी बोली है। भोजपुरी में मुख्य रूप से लोक साहित्य ही मिलता है। कबीरदास, राहुल सांकृत्यायन, गोरख पाण्डेय, चंचरीक, धरमदास, शिव नारायण, लक्ष्मी सखी आदि उल्लेखनीय हैं।  भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का सेक्सपियर भी माना जाता है।

भोजपुरी बोली के अन्य नाम

इसे ‘पूरबी’ और ‘भोजपुरिया’ नाम से भी जाना जाता है।

भोजपुरी बोली की उपबोलियाँ

 

भोजपुरी की मुख्य रूप से चार उपबोलियाँ हैं-

  • उत्तरी भोजपुरी (थारू भोजुपरी भी इसके अन्तर्गत आती है।),
  • दक्षिणी भोजपुरी (परिनिष्ठित रूप),
  • पश्चिमी भोजपुरी तथा
  • नगपुरिया।

इसके आलावा इसके अन्य स्थानीय रूप निम्नलिखित हैं- मधेसी, बँगरही, सोनपारी, छपरिहा, सखरिया, सारन बोली, गोरखपुरी आदि।

भोजपुरी बोली का क्षेत्र

बिहार के भोजपुर, शाहाबाद, सारन, छपरा, चम्पारण, राँची, जशपुर, पलामू का कुछ भाग, मुजफ्फरपुर का कुछ भाग तथा उत्तर प्रदेश के वाराणसी, गाजीपुर, बलिया, जौनपुर, मिर्जापुर, गोरखपुर, देवरिया, आजमगढ़ आदि जिलों में बोली जाती है। भारत से बाहर मारिशस आदि देशों में भोजपुरी बोलने वालो की संख्या बहुत बड़ी है।उत्तरप्रदेश के वाराणसी, गाजीपुर, देवरिया, बलिया, आजमगढ़, महाराजगंज, मऊ, चंदौली, संत कबीरनगर, सोनभद्र, कुशीनगर के सम्पूर्ण जिले, जौनपुर, मिर्जापुर एवं बस्ती जिलों के पूर्वी भाग में भोजपुरी बोली जाती है।

भोजपुरी बोली की प्रमुख विशेषताएँ

भोजपुरी बोली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. इसमें ‘ङ्’ का प्रयोग स्वतन्त्र रूप से अन्य व्यंजनों के समान होता है, जैसे- टाङ् (पैर), कङ्ना (कंगना) अड्यिा (अंगिया) आदि।
2. इसमें महाप्राणीकरण का प्रयोग अधिक होता है, जैसे- ‘पेड़’ की जगह ‘फेड़’, ‘सब’ की जगह ‘सभ’, ‘ठंडा’ की जगह ‘ठंढा’ आदि।
3. इसमें घोषीकरण की प्रवित्ति पाई जाती है, जैसे- ‘नकद’ की जगह ‘नगद’, ‘डॉक्टर’ की जगह ‘डगडर’ आदि।
4. इसमें विपर्यय की प्रवित्ति भी मिलती है, जैसे- ‘लखनऊ’ की जगह ‘नखलऊ’, ‘नाटक’ की जगह ‘नकटा’ आदि।
5 इसमें  कुछ ध्वनि परिवर्तन निम्नलिखित हैं-

ल > रा-      फल > फर, गला > गर

न > ल-      नोटिस > लोटिस, नम्बरदार > लम्बरदार

श, स > च-   शाबाश > चाबस
6. भोजपुरी बोली में संज्ञा के तीन रूप मिलते हैं, जैसे-

  • अहिर, अहिरा, अहिरवा
  • चमार, चमरा, चमरवा
  • सोनार, सोनरा, सोनरवा

7. इसमें स्त्री वाचक शब्द बनाने के लिए ई, नी, आनी और इया प्रत्यय का प्रयोग होता है, जैसे- लइकी, महटरनी, द्यौरानी, डिबिया आदि।
8. इसमें बहुवचन बनाने के लिए- अन्, न्ह, अन्ह प्रत्ययों का प्रयोग किया जाता है, जैसे- घोड़न्, घोड़न्ह, घोडिन्ह आदि।
9. इसमें सर्वनाम के रूप विशिष्ट हैं, जैसे- मे, मय, हमनी का, हमहन, तें, तै, तोहारकें, ऊ, हुन्हि, ऊलोगनक, ओकरन से, केहू, कुछुवौ, जेके आदि।
10. इसके विशेषण भी विशिष्ट हैं, जैसे- बड़ा > बड़का, बड़की, लाल > ललका, काला > करिया, राम (1), दू, चँवतिस, अरतिस, ओन्तालिस, सावा, अढाइ, पहुँचा, झुट्ठा आदि।
11. इसकी कुछ क्रिया निम्नलिखित हैं- चलल, चलली, चलले, चललेह, चललनि, चललसि, चललह आदि।
12. इसकी कुछ सहायक क्रियाएं निम्नलिखित हैं- हैं, हईं, हवीं, हवों, हवे, हवस, हसन, हहस आदि।13. भोजपुरी बोली के विशिष्ट क्रिया विशेषण निम्नलिखित हैं- इँहाँ, एठन, ठे, उँहाँ, उँहवाँ, ऊठाँ, जाहाँ, तेठन, अँव, एहबेरा, आजु, काल, काल्ह, परसों, परों, परौं आदि।


2. मगही

’मगही’ शब्द ’मागधी’ का विकसित रूप है। मगही या मागधी का अर्थ है- ‘मगध की भाषा’, परन्तु आधुनिक मगही प्राचीन मगध तक ही सीमित नहीं है।यह बोली बिहार राज्य के पटना, गया, मुंगेर, जहानाबाद, नालंदा, नवादा, जमुई, शेखपुरा, औरंगाबाद, लक्खीसराय, भागलपुर तथा झारखण्ड राज्य के पलामू, हजारीबाग तथा उसके निकटर्ती भूभाग में बोली जाती है।मगही का परिनिष्ठित रूप ’गया’ जिले में व्यवहृत होता है।पटना की मगही पर मैथिली, भोजपुरी तथा उर्दू का प्रभाव है।दक्षिणी सीमा की मगही ओडिया से पश्चिमी सीमा की मगही ’भोजपुरी’ से और पूर्वी सीमा की ’बंगाली’ से प्रभावित है।मगही बिहारी हिंदी की महत्वपूर्ण बोली है। यह बोली पूर्वी बिहारी के अंतर्गत आती है। मगही बोली की लिपि मुख्य रूप से कैथी तथा नागरी है। पूर्वी मगही कहीं-कहीं बंगला तथा उडिया लिपि में भी लिखी जाती है। जार्ज ग्रियर्सन के अनुसार मगही बोलने वालों की संख्या 6504817 थी। 1971 की जनगणना अनुसार यह संख्या 6638495 है। मगही बोली में लोक साहित्य ही मिलता है, जिसमें ‘गोपी चन्द’ तथा ‘लोरिक’ प्रसिद्ध हैं।

मगही बोली के अन्य नाम

मगही को ‘मागधी’ भी कहा जाता है। वस्तुतः ‘मगही’ शब्द ‘मागधी’ का ही विकसित रूप है।

मगही बोली की उपबोलियाँ

 

मगही बोली का प्रमुख रूप पूर्वी मगही है। पूर्वी मगही की प्रमुख उपबोलियाँ निम्नलिखित हैं- कुड़माली, खोंटाली और पाँच परगनिया। टलहा मगही, जंगली मगही, सोनतटी मगही आदि उपबोलियों के स्थानीय रूप हैं। मगही बोली सीमावर्ती बोलियों & भाषाओं से प्रभावित है, जैसे पूर्वी पूर्णिया की सिरपुरिया उपबोली के संबंध में अंतर करना कठिन हो जाता है कि यह मगही है या बंगला। मगही के मिश्रित रूपों को ‘मैथिली प्रभावित मगही’ और ‘भोजपुरी प्रभावित मगही’ भी कहा जाता है।

मगही बोली का क्षेत्र

मगही बोली गया, पटना, हजारीबाग, मुंगेर, पालामाऊ, भागलपुर, सारन और राँची जिलों के कुछ भागों में बोली जाती है। मगही का आदर्श रूप ‘गया’ जिले में मिलता है, प्रमुख केंद्र भी यही है।

मगही बोली की विशेषताएँ

मगही बोली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. इसकी प्रमुख विशेषता है- इसकी विपर्यक प्रवृत्ति, जैसे- बतख़ > बकत, नज़दीक > नगीच
2. मगही बोली में महाप्राणीकरण की प्रवृत्ति मिलती है, जैसे- पेड़ > फेड़, पुनः > फेन
3. मगही में अकारण अनुनासिकता पाया जाता है, जैसे- हाथ > हाँथ, सड़क > सँड़क
4. मगही बोली के कुछ ध्वनि परिवर्तन निम्नलिखित हैं-
श, ष > स-   शैतान > सैतान, देश > देस

ल > र-      मछली > मछरी, कलेजा > करेजा
5. मगही बोली में अनेक संज्ञाओं के दो अथवा तीन रूप मिलता है, जैसे-
नाऊ > नउवाबेटा > बेटवा > बेटउवा
6. मगही के कुछ स्त्रीलिंग प्रत्यय विशिष्ट हैं, जैसे- ई (घोरी), इया (बुढ़िया) आइन (ललाइन) ऐनी (पंडितैनी) आदि।
7. मगही बोली में प्रयुक्त कुछ सर्वनाम दृष्टव्य हैं- मोरा, हमरा, हमनी, हमरनी, तूँ, तों, तोहनी, ऊ, ओकरा, उन्हकरा, ई, एह, इन्हकनी, केकरोके, कौनोंलेल, तौन, तऊन, के, को आदि।
8. विशेषण भी इसकी विशिष्टता को रेखांकित करते हैं- एगो, दू, पान (5), छो, पछन्तर, सव (100) कड़ोर, दोसर, तेसर, चौठ, पउआ, तेहाई, जइसन, तइसन आदि।
9. इसकी कुछ क्रिया निम्नलिखित हैं- चलत, चलित, चलल, चललमेल, चलब, चले बला, चयानिहारा आदि।
10. मगही की कुछ सहायक क्रियाएं निम्नलिखित हैं- ही, हिकूँ, हकिन, हनिन, हहो, हहू, हदुन, हलूँ, हली, ही, हिथो आदि।
11. मगही बोली के कुछ विशिष्ट क्रिया विशेषण निम्नलिखित हैं- ईठयाँ, हियाँ, हुआँ, जेठवाँ, जेतह, जरवनी (जब) ओखनी, तखनी (तब), होहर (उधर), जेन्ने, जेन्दे (जिधर) आदि।

3. मैथिली

मिथिला की बोली को ’मैथिली’ कहा जाता है। इसका उद्भव मागधी अपभ्रंश के मध्यवर्ती रूप से हुआ है। भोजपुरी क्षेत्र के पूर्व में तथा मगध के उत्तर में ’मिथिला’ है और वहाँ की बोली ’मैथिली’ है। मैथिली का क्षेत्र बिहार के उत्तरी भाग में पूर्वी चम्पारन, मुजफ्फरपुर, मुंगेर, भागलपुर, दरभंगा, पूर्णिया तथा उत्तरी संथाल परगना है। इसके अतिरिक्त यह माल्दह, दिनाजपुर, भागलपुर, तिरहुत सबडिवीजन की सीमा के पास नेपाल की तराई में भी बोली जाती है।

 मैथिली की छह बोलियाँ हैं

  • उत्तरी मैथिली,
  • दक्षिणी मैथिली,
  • पूर्वी मैथिली,
  • पश्चिमी मैथिली,
  • छिकाछिकी तथा जोलहा बोली।

बिहारी हिन्दी की बोलियों में केवल ’मैथिली’ ही साहित्यिक दृष्टि से सम्पन्न है।विद्यापति की पदावली की भाषा मैथिली है। मैथिली साहित्य के प्राचीनकाल के गीतकारों में विद्यापति और गोविन्ददास मध्यकाल के नाटककारों में रणजीतलाल और जगत प्रकाश मल्ल, कीर्तनिया नाटक लिखने वालों में उमापति उपाध्याय, एकांकीकारों में शंकरदेव, संत कवियों में साहेब रामदास, कृष्णभक्त कवियों में मनबोध झा और आधुनिक काल के साहित्यकारांे में चंदा झा, तंत्रनाथ झा, हरिमोहन झा प्रसिद्ध है।

मैथिली नाम का प्रयोग प्रदेश के आधार पर किया गया है। मैथिली शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1801 ई. में कोलबुक ने किया था। इससे पहले इसे ‘देसिल बअना’ (विद्यापति) अथवा तिरहुतिया कहा जाता था। मैथिली बोली सामान्यतः नागरी लिपि में लिखी जाती है, परन्तु मैथिल ब्राह्मण इसे ‘मैथिली लिपि’ में लिखते हैं। कहीं-कहीं कैथी लिपि का प्रयोग भी होता रहा है। जार्ज ग्रियर्सन के अनुसार इसके बोलने वालों की संख्या 10262357 थी। 1971 की जनगणना के अनुसार यह संख्या 6121922 है। (मैथिली बोली) का प्राचीनतम उपलब्ध ग्रन्थ ज्योतिरीश्वर ठाकुर का ‘वर्ण रत्नाकर’ है। विद्यापति, उमापति, महीपति आदि इस बोली के प्रसिद्ध साहित्यकार हैं। विद्यापति से आपलोग परिचित ही होने, जिन्हें मैथिल कोकिल कहा जाता है।विद्यापति के गीत मिथिला के घर-घर गाते जाते हैं। संविधान की आठवीं अनुसूची में एक मात्र स्थान पाने वाली मैथिली हिन्दी की एक मात्र बोली है।

मैथिली बोली के अन्य नाम

मैथिली बोली का अन्य प्रमुख नाम देसिल बअना और तिरहुतिया है।

मैथिली बोली की उपबोलियाँ

मैथिली बोली की प्रमुख उपबोलियाँ निम्नलिखित हैं- केन्द्रीय मैथिली, दक्षिणी मैथिली, पूर्वी मैथिली, छिकाछिकी (मगही तथा बंगला से प्रभावित), पश्चिमी मैथिली (भोजपुरी से प्रभावित), जोलाही मैथिली (अरबी-फारसी मिश्रित) आदि।

मैथिली बोली का क्षेत्र

मैथिली बोली का प्रयोग पूर्वी चम्पारण, मुजफ्फरपुर, उत्तरी मुंगेर, उत्तरी भागलपुर, दरभंगा, पूर्णिया का कुछ भाग तथा नेपाल के रौताहट, सरलारी, सप्तरी, मोहतरी और मोरंग आदि जिलों में किया जाता है। इसका केन्द्र दरभंगा जिला है।

मैथिली बोली की विशेषताएँ

मैथिली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. मैथिली बोली की कुछ ध्वनि परिवर्तन निम्नलिखित हैं-
ल > न-      लवण > नून

न > ल-      नालिश > लालिस, नोट > लोट
2. इस में घोषीकरण और अघोषीकरण दोनों की प्रवृति पाई जाती है, जैसे-
घोषीकरण-    डॉक्टर > डाकडर, एकादश > एगारह

अघोषीकरण-   मेज़ > मेच, कमीज > कमीच
3.इस  में महाप्राण ध्वनियों का प्रयोग होता है, जैसे- जर्जर > झाँझर, वेष > बेख
4. इस में संज्ञा के रूप तीन या चार तरह से चलते है, जैसे-
घर- घरवा- घरउआघोड़- घोड़ा- घोड़वा- घोडउवा

5. इस में स्त्रीलिंग बनाने के लिए ई (नेनी- लड़की), इया (नेनिया), ईवा (घोड़ीवा) आइनि (मोदिआइनि) आदि प्रत्ययों का प्रयोग किया जाता है।
6. इस के सर्वनाम भी विशिष्ट हैं, जैसे- हाय, हँओ, हमनी, मोरें, मोय, तोंह, तुहुँ, तोहर, ओहि, उहे, तनि, तन्हि, ई, ए, केऊ, कोय, कुछु, किछु आदि।
7. इस  में- मीठ-मीठा-मिठका, दू, दुइ, चउदह, अठतिस, चउवन, बिरानवे (92), सै (100), अउबल (अव्वल), दोसर, तेसर आदि विशेषण प्रयुक्त होते हैं।
8. इसकी क्रिया भी विशिष्ट हैं, जैसे- चल, चलै, चलअ, चलिहे, चलिअह, चलू, चली आदि।
9. इस में निम्नलिखित सहायक क्रिया का प्रयोग होता है- छिअहु, थिकहुँ, थिकिऔ, छथून्हि, छथून, छी, छिऐ, छलिअहु आदि।
10.इस में निम्न क्रियाविशेषण प्रयुक्त होते हैं- एतय, बैठियाँ, जते, जत्ते, एखन, एहिया, तखन, तेखनि आदि।

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