इसे “छंदों का अजायबघर” कहा जाता है | आचार्य शुक्ल ने इसे हिंदी का प्रथम महाकाव्य ओर इसके रचयिता चन्दरबरदाई को हिंदी का प्रथम कवि माना है।चन्दरवरदाई दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहाण के प्रमुख सामंत सलाहकार, मित्र ओर राज कवि थे| उन्होंने खुद को छः भाषाओँ का ज्ञाता बताया है| चंदरबरदाई इसे पूरा नहीं कर पाए | इसे उनके 10 पुत्रों में से किसी ने पूरा किया ।इनके विषय में प्रसिद्ध है कि इन दोनों चन्दरवरदाई ओर पृथ्वीराज का जन्म एक ही दिन हुआ था ओर मृत्यु भी एक ही दिन हुई थी ।चंदरबरदाई इसके चार संस्करण प्रसिद्ध हैं | सबसे बड़ा संस्करण नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा काशी से प्रकशित हुआ जिसकी हस्तलिपि उदयपुर के संग्रहालय में सुरक्षित है | चौथा संस्करण सबसे छोटा है जिसमें केवल 1300 छंद हैं |
- इसकी ऐतिहासिक प्रमाणिकता संदिग्ध है
- इसमें श्रृंगार और वीर रसों का सुंदर प्रयोग है
- यह वीर रस प्रधान ग्रन्थ है
- हिंदी साहित्य की सर्वाधिक विवादित रचना
- यह 16 सर्गों में विभक्त है
- 16000 से अधिक छन्दों का प्रयोग