इसका जन्म भी बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा से ही हुआ था | सिद्ध साहित्य में आई विकृतियों के फलस्वरूप नाथ साहित्य का जन्म हुआ था | नाथों ने योग साधना को एक स्वच्छ रूप में धारण किया और सामाजिक असमानता, व्यभिचार को ख़त्म करने का प्रयास किया |इस सम्प्रदाय को सुव्यवस्थित रूप देने का श्री गोरखनाथ को जाता है |नाथ का अर्थ है-अनादि रूप, मोक्ष प्रदाता, ब्रह्म आदि |इनकी एक विशेष वेशभूषा होती थी |इनके हाथ में किंकरी, सर पर जटा, शारीर पर भस्म , कंठ में रुद्राक्ष, हाथ में कमंडल आदि |नाथ सम्प्रदाय में 9 नाम आते हैं | इन्होनें भोग का तिरस्कार, इन्द्रिय संयम, मनः साधना, प्राण साधना , कुण्डलिनी जागरण और योग साधना को अधिक महत्त्व दिया | इनकी साधना प्रणाली हठयोग पर आधारित थी जिसमें “ह” का अर्थ सूर्य और “ठ” का अर्थ चन्द्र और दोनों के योग को हठयोग कहते थे |शारीर में छः चक्रों और तीन नाड़ियों के विषय में बताया गया है |
नाथ सम्प्रदाय की विशेषताएं (Features of Nath Sahitya)
- मिश्र बंधुओं ने गोरखनाथ को हिंदी का प्रथम गद्य लेखक माना है |
- दार्शनिक पक्ष शैवमत और व्यवहारिक पक्ष हठयोग से सम्बन्धित था|
- चित्त शुध्दि और सदाचार पर बल
- परम्परागत रुढियों और बह्याडम्बरों का विरोध
- गुरुमहिमा
- उलटवासियाँ -बाहरी जगत से आंतरिक जगत की और करने की प्रक्रिया
- नाथों की साधना का क्रम इन्द्रिय निग्रह-प्राण साधना-मनः साधना
- जन भाषा का परिष्कार
- इनकी भाषा साधुक्कड़ी थी जिसमें कड़ी बोली लिए राजस्थानी थी |
- डा० पीताम्बर बडथ्वाल ने गोरखनाथ के 14 ग्रंथों को प्रमाणिक मानकर उनका सम्पादन “गोरखवाणी” में किया है |