महावीर जैन जोकि तथागत बुद्ध के समकालीन माने जाते हैं , जैन धर्म के मुख्य संत माने जाते हैं जबकि इसकी स्थापन महावीर स्वामी ने की थी | बौद्धों की तरह इन्होने भी संसार के दुखों की और ध्यान दिया | सुख-दुःख बंधन जितने के कर्ण ये जिन्न या जैन कहलाए | महावीर ने अहिंसा पर अधिक जोर दिया |जैन धर्म के मूल सिद्धांत हैं-अहिंसा, सत्य भाषण, अस्तेय, और अनासक्ति | बाद इसमें ब्रह्मचर्य भी शामिल हो गया |

आदिकाल में सबसे ज्यादा ग्रन्थ जैन साहित्य के ही मिलते हैं| जैन मुनियों द्वार अपभ्रंश में रचित जैन साहित्य सिर्फ धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से भी बहुत ही महत्त्वपूर्ण है |यह धर्म हिन्दू धर्म के काफी नजदीक है | जैन कवियों ने आचार, रास, पाश, चरित आदि विभिन्न शैलियों में साहित्य की रचना की | सबसे अधक लोकप्रिय रस ग्रन्थ माने जाते हैं | यह रस ग्रन्थ वीरगाथा रासो से अलग हैं| रास एक तरह से गेयरूपक हैं जिनका जैन लोग रात्री के समय मंदिरों में ताल देकर रास गायन करते थे | हिंदी में इस परम्परा के प्रवर्तक शाधू शालिभद्र सूरी हैं जिनकी रचना (1184)” भरतेश्वर बाह्बली रास”( खंडकाव्य) प्रसिद्द है| जैन मुनियों ने पौराणिक पुरुषों के अतिरिक्त अपने सम्प्रदाय के महापुरुषों के जीवन को भी काव्यबद्ध किया है |

जैन अपभ्रंश साहित्य की रचना करने वाले तिन प्रमुख कवि हैं- स्वयंभू , पुष्पदंत और धनपाल | इनके अतिरिक्त- देवसेन, जिनदत्त सूरी, हेमचन्द्र , हरिभद्र सुरि आदि | महाकवि स्वयंभू अपभ्रंश के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं | इनका समय आठवीं सदी का है | इनकी प्रमुख रचनाएं- पदमचारित( सर्वश्रेष्ठ रचना- इसके कर्ण अपभ्रंश का वाल्मीकि भी ), अरिष्टनेमि , पंचमोचारित आदि हैं |

जैन साहित्य की विशेषताएँ (Features of Jain Literature)

  • उपदेशतामूलक साहित्य जिसका मुख्य उद्देश्य जैन धर्म के प्रति आस्था और प्रचार करना था |
  • जैन साहित्य मन विभिन्न विषयों सामाजिक धार्मिक, ऐतिहासिक के साथ ही लोक-आख्यान कथाओं का समावेश है | रामायण, महाभारत सम्बन्धी कथाओं पर अधिक दक्षता
  • तत्कालीन स्थितियों का यथार्थ चित्रण क्योंकि ये राजाश्रित कवि नहीं थे |
  • कर्मकांड और रुढियों और परम्पराओं का विरोध जैसे- उपासना, पूजा-पाठ, शाश्त्रीय ज्ञान, मंदिर, मूर्ति, जाति, वर्ण, मन्त्र, तंत्र आदि |
  • आत्मानुभूति पर विश्वास
  • रहस्यवादी विचारधारा का समावेश
  • विभिन काव्य रूप- रास, फागु, छप्पय, गीत, स्तुति आदि का प्रयोग
  • शांत या निर्वेद रस की प्रधानता- नेमिचंद चउपई में करुण रस , भरतेश्वर बाहुबलि रास में वीर रस
  • प्रेम के विभिन्न रूप- विवाह के लिए प्रेम, विवाह के बाद प्रेम, असमाजिक प्रेम, विषम प्रेम आदि
  • गीत तत्व की प्रधानता
  • अलंकार योजना-अर्थालंकारों की प्रमुखता ( हैं दोनों )
  • छंद विधान- कडवक , पटपदी, बिल्सनी, स्कंदक, रासा, दोहा, सोरठा आदि
  • लोकभाषा का प्रयोग
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