• इनका जन्म 1555 ई० में बुन्देलखण्ड के ओरछा में और मृत्यु 1617 में हुई |
  • ये ओरछा नरेश रामसिंह के भाई इन्द्रजीत सिंह के गुरु और राज्याश्रित कवि थे |
  • इनका उपनाम वेदांती मिश्र था |
  • ये निम्बार्क सम्प्रदाय में दीक्षित थे |
  • ये मुख्यतः रीतिकालीन कवि हैं, परन्तु कुछ रचनाएँ रामभक्ति से सम्बन्धित हैं |
  • 1601 ई० में इनके द्वारा रचित रामचंद्रिका एक महत्त्वपूर्ण रचना है | शुक्ल ने इसे छंदों का अजायबघर कहा है |
  • ऐसा माना जाता है कि केशवदास ने तुलसी की रामचरितमानस की प्रतियोगिता में इसे एक रात में लिखा था |
  • यह एक प्रबंध काव्य है जिसे 39 प्रकाशों (अध्यायों) में विभाजित है |
  • संवादयोजना के कारण यह अत्यंत उच्चकोटि की रचना है |
  • ड़ा० नागेन्द्र, आचार्य विश्वनाथ और गणपतिचन्द्र गुप्त आदि द्वारा रीतिकाल का प्रवर्तक कहा गया है |
  • ड़ा० विजयपाल ने इन्हें “कोर्ट का कवि” कहा है |
  • शुक्ल इन्हें अलंकरवादी कवि मानते हैं | इन्होने अलंकार का विवेचन दंडी के काव्यादर्श और केशव मिश्र के रचित अलंकार शेखर के आधार पर किया |
  • ये भामह, दंडी और उद्भट के अनुयायी थे |
  • शुक्ल द्वारा आलोचना– केशव को कवि हृदय नहीं मिला था| उनमें वह सहृदयता और भावुकता नहीं थी जो एक कवि में होनी चाहिए | वे संस्कृत साहित्य से सामग्री लेकर अपने पांडित्य और रचना कौशल की धाक जमाना चाहते थे |
  • प्रमुख रचनाएँ-रसिकप्रिया, रामचन्द्रिका, कविप्रिया, रत्नबावनी, वीरसिंहदेव चरित, विज्ञान गीता, जहाँगीर जसचन्द्रिका, नखशिख, छंदमाल |

केशव की रचना की प्रमुख पंक्तियाँ

मूलन ही की जहाँ अधोगति केसव गाइय |होम हुतासन धूम नगर एकै मलिनाइय ।

दुर्गति दुर्गन ही को कुटिलगति सरितन ही में। श्री फल कौ अभिलाष प्रगट कविकुल के जी में।

कौन की सुत, बालि के, वह कौन बालि, न जानिए। काँख चापि तुम्हें जो सागर सात न्हात बखनिये |

तिन नगरी तिन नागरी प्रतिपद हंसक हीन | जलजहार सोभित न जहं प्रगट पयोधर पीन।|

विधि के समान है विमानीकृत राजहंस विविध विवुधयुत मेरु सो अचल है।

दीपति दिपती अति सातों दीप दीपियतु दूसरो दिलीप सो सुदक्षिणा को बलू है।

Scroll to Top