- कबीर का जन्म 1398 ई० में काशी में हुआ |
- चौदह सौ पचपन साल गये,
चन्द्रवार एक ठाठ भये।
जैठ सुदी बरसाइत को, पूरनमासी प्रगट भये।। - इनके माता-पिता का नाम नीरू-नीमा है |
- कबीर की पत्नी का नाम लोई तथा पुत्र-पुत्री का नाम कमाल-कमाली था |
- मुसलमानों के अनुसार कबीर के गुरु फ़क़ीर शेख तकी था | ये सिकंदर लोधी के भी गुरु थे |
- कबीर पर सूफियों की प्रेम की पीर का प्रभाव पड़ा |
- कबीर सामान्य अक्षरज्ञान से रहित है |
- कबीर की वाणी का संग्रह उनके शिष्य धर्मदास ने “बीजक” नाम से सन 1464 में किया | बीजक के 3 भाग हैं-रमैनी, सब्द और साखी |मिली
- कबीर की वानियों का संग्रह “गुरु ग्रन्थ साहिब में है |
- कबीर का प्रतिपाद्य विषय दो प्रकार के हैं-रचनात्मक और आलोचनात्मक |
- कबीर की मृत्यु मघहर में हुई थी |
- कबीर के जीवन से सम्बन्धित उपलब्ध ग्रन्थ- कबीरपरिचई(अनंतदास), भक्तमाल (नाभादास)
कबीर की रचनाओं में प्रयुक्त छंद और भाषा इस प्रकार है-
रचना | अर्थ | प्रयुक्त छंद | भाषा |
रमैनी | रामायण | चौपाई+ दोहा | ब्रजभाषा और पूर्वी बोली |
सबद | शब्द | गेय पद | ब्रजभाषा और पूर्वी बोली |
साखी | साक्षी | दोहा | राजस्थानी, पंजाबी |
विशेषः
(1) साखी- इस भाग में कबीर द्वारा रचित दोहों को शामिल किया गया है।इसमें साम्प्रदायिक शिक्षा और सिद्धान्त के उपदेश है। इसकी भाषा सधुक्कङी है। इसका विभाजन 59 अंगो में किया गया है।
प्रथम अंग- गुरुदेव को अंग
अन्तिम अंग- अबिहङ को अंग
(2) सबद- इस भाग द्वारा रचित पदों का शामिल किया गया है।इसकी भाषा ब्रज या पूर्वी बोली है। इस भाग में कबीर के माया सम्बन्धी विचारों की अभिव्यक्ति हुई है।
(3) रमैणी- इस भाग में कबीर द्वारा रचित राम संबंधी पदों व चौपाईयों को शामिल किया गया है। इसकी भाषा ब्रज या पूर्वी बोली है।
कबीर के बारे में विभिन्न साहित्यकारों के कथन
साहित्यकार | कथन |
रामचंद्र शुक्ल | निर्गुण मार्ग के निर्दिष्ट प्रवर्तक कबीर ही थे |
ड़ा० बच्चन सिंह | हिंदी भक्ति काव्य का प्रथम क्रांतिकारी पुरस्कर्ता कबीर है | |
हजारी प्रसाद द्विवेदी | भाषा का डिक्टेटर |
रामचंद्र शुक्ल | बीर की वचनावली की सबसे प्राचीन प्रति सन 1512 ई० में लिखी है | |
कबीर के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण कथन –
रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार –
’’इसमें कोई सन्देह नहीं कि कबीर ने ठीक मौके पर जनता के उस बङे भाग को सँभाला जो नाथ पंथियों के प्रभाव से प्रेमभाव और भक्ति रस से शून्य शुष्क पङता जा रहा था।’’
रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार –
’’उन्होंने भारतीय ब्रह्मवाद के साथ सूफियों के भावात्मक रहस्यवाद, हठयोगियों के साधनात्मक रहस्यवाद और वैष्णवों के अहिंसावाद तथा प्रपत्तिवाद का मेल करके अपना पंथ खङा किया।’’
रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार –
’’भाषा बहुत परिष्कृत और परिमार्जित न होने पर भी कबीर की उक्तियों में कहीं-कहीं विलक्षण प्रभाव और चमत्कार है। प्रतिभा उनमें बङी प्रखर थी इसमें सन्देह नहीं है।’’
लक्ष्मी सागर वार्ष्णेय लिखते है कि –
’’कबीर की रचनाओं में भारतीय निर्गुण ब्रह्मवाद, सूफियों का रहस्यवाद, योगियों की साधना, अहिंसा आदि की बातें होते हुए भी स्वामी की दृष्टि से सगुण ब्रह्म का उल्लेख हो गया है।
डा. श्यामसुन्दर दास के अनुसार –
’’जहाँ कबीर की राख को समाधिस्थ किया गया था वह स्थान बनारस में अब तक कबीर चैरा के नाम से प्रसिद्ध है।’’
हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार –
’’हिन्दी साहित्य के हजार वर्षों के इतिहास में कबीर जैसा व्यक्तित्व लेकर कोई लेखक उत्पन्न नहीं हुआ। महिमा में यह व्यक्तित्व केवल एक ही प्रतिद्वन्द्वी जानता है तुलसीदास।’’
हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार-
’’कबीर ने ऐसी बहुत बाते कही है जिनसे समाज सुधार में सहायता मिलती है पर, इसलिए उनको समाज सुधारक समझना गलती है।’’
डाॅ. बच्चन सिंह के अनुसार –
’’कबीर की भाषा संत भाषा है। भाषा की यह स्वाभाविकता आगे चलकर प्रेमचन्द में ही मिलती है।’’
डाॅ. श्यामसुन्दर दास के अनुसार –
’कबीर’ की भाषा का निर्णय करना टेढी खीर है, क्योंकि वह खिचङी है।’’
लक्ष्मी सागर वार्ष्णेय लिखते है कि –
’’कबीर प्रधानतः उपदेशक और समाज सुधारक थे।’’
डाॅ. नगेन्द्र के अनुसार –
’’भारतीय धर्मसाधना के इतिहास में कबीरदास ऐसे महान विचारक एवं प्रतिभाशाली महाकवि है।’’
हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार-
’’वे सिर से पैर तक मस्तमौला, स्वभाव से फक्कङ फकीर थे।
हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार-
’’भाषा पर कबीर का जबरदस्त अधिकार था वे वाणी के डिक्टेटर थे।’’
आचार्य शुक्ल के अनुसार-
’’साम्प्रदायिक शिक्षा और सिद्धान्त के उपदेश मुख्यतः ’साखी’ के भीतर है, जो दोहों में है। इसकी भाषा सधुक्कङी अर्थात् राजस्थानी पंजाबी मिली खङी बोली है।’’
आचार्य शुक्ल के अनुसार –
’’निर्गुण पंथ में जो थोङा बहुत ज्ञान पक्ष है वह वेदान्त से लिया हुआ है। जो प्रेत तत्त्व है वह सूफीयों का है। अहिंसा, और प्रप्रति के अतिरिक्त वैष्णवता का और कोई अंश उसमें नहीं है। उसके सुरति और निरति शब्द बौद्ध सिद्धों के है।’’
डा. चन्द्रबली पाण्डेय के अनुसार –
’’कबीर का रहस्यवाद प्रायः शुष्क और नीरस है।’’
डा. बच्चन सिंह लिखते है कि –
’’यह कहना कि वे समाज-सुधारक थे गलत है। यह कहना कि वे धर्म-सुधारक थे, और भी गलत है। यदि सुधारक थे तो रैडिकल सुधारक। वे धर्म के माध्यम से समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन लाना चाहते थे।’’
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार –
’’वे (कबीर) भगवान के नृसिंहावतार के मानो प्रतिमूर्ति थे।’’
डा. गणपतिचन्द्र गुप्त लिखते है –
’’कबीर की सैद्धांतिक या दार्शनिक मान्यताएँ अद्वैतवाद के अनुकूल है। व्यावहारिक क्षेत्र में कबीर पूर्णतः प्रगतिशील दिखाई पङते है।’’
कबीर की वाणी के कुछ उदहारण
- दशरथ सूत तिहूँ लोक बखाना , राम नाम का मरम न जाना |
कबीर माया पापणी हरी सू करे हराम, मुखि कड़ीयाली कुमति की कहन न देई राम |
एक बूंद ते विश्व रच्यो है को बाह्मन को शुद्रा, एकै बूंद, एकै मुल्मुतर एकै चाम एक गूदा
एक जोति थे बिस्व उत्पन्ना को बामन को सुदा ||
मैं कहता हूँ आँखिन देखी, तू कहता कागद की लेखी ||
कबीर भक्त थे। भक्ति के प्रसार के क्रम में ही उन्होंने सामाजिक रूढ़ियों अन्धविश्वास, मूर्तिपूजा, हिंसा, माया, जाति-पाँति, छुआछूत आदि का उग्र विरोध किया।
तीर्थाटन का विरोध
गंगा नहाए कहो को नर तरिंगे
मछरी न तरी जाको पानी में घर है।
मूर्तिपुजा का विरोध
पाहन पूजे हरि मिलैं ता मैं पूजू पहार।
ताते तो चाकी भली पीस खाय संसार।।
हिंसा का विरोध
दिन भर रोजा रखत है रात हनत है गाय।
यह तो खून वह बन्दगी कैसी खुशी खुदाय।।
बकरी पाती खात है ताको काढ़ी खाल।
जे नर बकरी खात है ताको कौन हवाल।।
जाति-पाँति छुआछूत का विरोध
एक बूँद ते विश्व रच्यो है को बाम्हन को शुद्रा।
एकै बूँद, एकै मलमूतर, एकै चाम एक गूदा।
एक जोति थै बिस्व उत्पन्ना को बामन को सूदा।।
साम्प्रदायिकता का विरोध
हिन्दू कहे मोहे राम पियारा और तुरक रहमाना।
आपस में दोऊ लरि मुए मरम न काहू न जाना।।
हिन्दू साम्प्रदायिकता का विरोध
वैष्णो की छपरी भली न साकत को गाँव।
भया तो क्या भया जाना नहीं बमेक।
छापा तिलक लगाई के दह्या लोक अनेक।।