हिंदी में खड़ी बोली के प्रथम काव्य प्रयोग का श्रेय इन्हीं को जाता है |इनका वास्तविक नाम अबुल हसन था | यह निजामुद्इदीन औलिया के शिष्य थे | इन्होने दिल्ली के सिंहासन पर 11 राजाओं का आरोहण देखा था |इन्होने हिन्दुओं -मुसलमानों में एकता स्थापित करने का प्रेस किया | या अनेक भाषाओँ ( अरबी, तुर्केकी, फारसी, ब्रज, खड़ी बोली)(खडी बोली के आदि कवि ) विद्वान थे |इन्होने मनोरंजन के माध्यम से लोक-व्यवहार की शिक्षा लोगों को अपने साहित्य के माध्यम से दी|इन्हीं के प्रयास से कविता राजाश्रय से निकलकर जन सामान्य के समीप आ पहुंची | इनकी सौ से भी अधिक रचनाएं मानी जाती हैं| परन्तु 20-22 के लगभग ही रचनाएं उपलब्ध हैं जिनमें से प्रमुख हैं- फूटकर पहेलियाँ, मुकरियाँ , दो सुखाने, ढकोसला, खालिक बारी और गज़ल आदि प्रसिद्ध हैं|

कुछ प्रमुख उदाहरण-

  • पहेलियाँ-एक थाल मोतियों से भरा, सबके उपर औंधा धरा | चारों तरफ वह थाल फिरे, एक भी मोती नीचे न गिरे ||
  • एक कहानी मैं कहूँ, सुन ले तू मेरे पूत | बिना परों के वह उड़ गया, बाँध गले में सूत ||
  • एक नार ने अचरज किया,साँप मार पिंजरे में दिया |जो जो साँप ताल को खाए , सूखे ताल साँप मर जाए ||
  • मुखरियाँ- वह आवे तब शादी होय, उस बिन दूजा न कोय| मीठे लागे बाके बोल, क्यों सखी साजन न सखी ढोल ||
  • जब मंदिर में आवे , सोते मुझको आन जगावे | पढ़त फिरत वह विरह के अच्छर सखी साजन न सखी मच्छर ||
  • दो सुखने- पान सडा क्यों ? घोड़ा अड़ा क्यों? ( फेरा न था)
  • ब्राहमण प्यासा क्यों? गधा उदासा क्यों? (लोटा न था)
  • ढकोसला- खीर पकाई जातां से, चरखा दिया चलाय | आया कुत्ता खा गया तू बैठी ढोल बजाय ||
  • ब्रजभाषा – एक नार पिया को भानी | तन वाको सरगा ज्यों पानी||
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