• मीरा बाई=इनका जन्म 1457 ई० में मेड़ता के समीप कुडकी गाँव में हुआ | इनका पिता का नाम रतनसिंह था , माँ बचपन में चल बसी | अतः इनका पालन-पोषण राव दूदा ने किया |1516 में राणा सांगा के बड़े बेटे भोज के साथ हुआ | 7 वर्ष बाद उनकी मृत्यु हो गई | वे सती नहीं हुई | संगा के बाद उनके उत्तराधिकारी विक्रमसिंह ने मीरा पर बहुत अत्याचार किए | वे अपना अधिक से अधिक समय पूजा-पाठ और साधू संगती में व्यतीत करने लगी | फिर उनके चचेरे भाई जयमल ने उसे अपने यहाँ बुला लिया | मीरा को रैदास की शिष्या भी माना गया है | और अंत में वृन्दावन में पहुंच गई | वहाँ इनकी भेट कृष्ण भक्त जी गोस्वामी से हुई | इसके बाद वे द्वारिका चली गई | और वहीँ रणछोड़दास के मंदिर में अपना जीवन व्यतीत किया |कृष्ण इनके इष्ट देव थे |
  • मीरा की प्रमुख रचनाएँ= गीतगोविन्द टीका, नरसी का मायरा, स्फुट पद, राग सोरठ के पद आदि | मीरा ने वियोग श्रृंगार के साथ शांत रस का प्रयोग किया है |
  • राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा का प्रयोग
  • रसखान= ये एक मुसलमान कवि थे | दो सौ वैष्णव की वार्ता में इन्हें प्रमुख कवि बताया गया है |इनका जन्म 1533 ई० में माना गया है | ऐसा माना जाता है कि इन्होने गोस्वामी विट्ठलनाथ से दीक्षा ग्रहण की थी |मूल गोसाईं चरित में उलेख मिलता है कि तुलसीदास ने रामचरितमानस सबसे पहले रसखान को ही सुनाया था |
  • रचनाएँ= प्रेमवाटिका, दानलीला संकलन सुजान, अष्टयाम, दानलीला | वर्तमान में सर्वाधिक प्रचलित “संकलन सुजान” रसखान है जिसमें 181 सवैये, 17 कवित्त और 12 दोहे और 4 सोरठे हैं |
  • रसखान ब्रजभाषामर्मज्ञ और सशक्त कवि हैं |प्रेमतत्त्व के निरूपण में अद्भुत सफलता |
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