धर्मवीर भारती (25 दिसंबर, 1926- 4 सितंबर, 1997) आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख लेखक, कवि, नाटककार और सामाजिक विचारक थे। वे एक समय की प्रख्यात साप्ताहिक पत्रिका धर्मयुग के प्रधान संपादक भी थे।

डॉ धर्मवीर भारती को 1992 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उनका उपन्यास गुनाहों का देवता सदाबहार रचना मानी जाती है। सूरज का सातवां घोड़ा को कहानी कहने का अनुपम प्रयोग माना जाता है, जिस पर श्याम बेनेगल ने इसी नाम की फिल्म बनायी, अंधा युग उनका प्रसिद्ध नाटक है।। इब्राहीम अलकाजी, राम गोपाल बजाज, अरविन्द गौड़, रतन थियम, एम के रैना, मोहन महर्षि और कई अन्य भारतीय रंगमंच निर्देशकों ने इसका मंचन किया है।

जीवन परिचय

धर्मवीर भारती का जन्म 25 दिसंबर 1926 को इलाहाबाद के अतर सुइया मुहल्ले में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री चिरंजीव लाल वर्मा और माँ का श्रीमती चंदादेवी था। स्कूली शिक्षा डी. ए वी हाई स्कूल में हुई और उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में। प्रथम श्रेणी में एम ए करने के बाद डॉ॰ धीरेन्द्र वर्मा के निर्देशन में सिद्ध साहित्य पर शोध-प्रबंध लिखकर उन्होंने पी-एच०डी० प्राप्त की।

घर और स्कूल से प्राप्त आर्यसमाजी संस्कार, इलाहाबाद और विश्वविद्यालय का साहित्यिक वातावरण, देश भर में होने वाली राजनैतिक हलचलें बाल्यावस्था में ही पिता की मृत्यु और उससे उत्पन्न आर्थिक संकट इन सबने उन्हें अतिसंवेदनशील, तर्कशील बना दिया।

 

नाटक की pdf

पात्र

अश्वत्थामा, गान्धारी, विदुर, धृतराष्ट्र, युधिष्ठिर, कृतवर्मा,
कृपाचार्य, संजय, युयुत्सु, वृद्ध याचक, गूँगा भिखारी, प्रहरी 1,
प्रहरी 2, व्यास, बलराम, कृष्ण

घटना-काल

महाभारत के अट्ठारहवें दिन की संध्या से लेकर प्रभास-तीर्थ में कृष्ण की मृत्यु के क्षण तक।

महाभारत कथानक

‘अंधा युग’ का कथानक महाभारत युद्ध के समाप्ति काल से शुरू होता है। वैसे तो अब तक महाभारत काल की घटनाओं पर काफी साहित्य लिखा जा चुका है – जिनमें कर्ण पर लिखे गए ‘रश्मिरथी’ और ‘सूतपुत्र’ प्रमुख हैं, लेकिन ‘अंधा युग’ इनसे थोड़ा अलग है क्योंकि यह समाज में सच मान ली गई या सच प्रचारित की गई चीजों से अलग है। इसमें युद्ध के औचित्य को चुनौती दी गई है, कृष्ण भगवान द्वारा कहे गए शब्दों को विवाद में खींचा गया है, महाभारत में – जिसमें ऐसा कहा गया था कि धर्मयुद्ध का पालन किया गया है – कुटिल योजनाओं की झलक दिखलाई गई है। ऐसा कहा जा सकता है कि पात्रों के चारों ओर से आभा हटाकर उन्हें एक सामान्य मनुष्य की तरह चित्रित किया गया है। ‘अंधा युग’ में मनुष्य की भावनाओं का सजीव चित्रण किया गया है। कृष्णा ने अर्जुन को भले ही गीता में सत्य के लिए युद्ध करने का सन्देश दिया हो लेकिन युद्ध में भयानक विध्वंस देखकर सभी का मन खिन्न हो गया था। ऐसा लग रहा था कि जिन आदर्शों के लिए पूरा युद्ध लड़ा गया, वो सारे आदर्श झूठे थे। धृतराष्ट्र और गांधारी यह जानते हुए भी कि उनके पुत्र धर्म की तरफ से युद्ध नहीं कर रहे हैं, अपने पुत्रों की जीत की आस लगा रखे थे। यह उनकी ममता थी। अश्वत्थामा प्रायश्चित और बदले की भावना में जल रहा था। पूरे हस्तिनापुर में एक निराशा का वातावरण था। युद्ध के वीभत्स चेहरे को भारती जी ने बहुत अच्छे से चित्रित किया है।

प्रस्तुत दृश्यकाव्य में भारती जी ने पहरेदारों के माध्यम से किसी घटना को दूर से देखने वालों के मानसिक द्वंद्व का चित्रण किया है। पहरेदारों ने युद्ध में भाग नहीं लिया था लेकिन फिर भी राज्य की अव्यवस्था के कारण उनका मन उदास था। उन्होंने पहले राज्य का वैभव देखा था, अब राज्य का पराभव देख रहे थे। उनके माध्यम से भारती जी ने संभ्रांत वर्ग के निर्णयों का वंचितों पर पड़ने वाले प्रभावों को दिखाया है।

आधुनिकता बोध

 

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प्रयोगधर्मिता

 

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 नाट्य भाषा

 

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