तुलसी की गुरु परम्परा= राघवानंद-रामानंद-अनंतानंद- नरहरिदास-तुलसीदास
- जीवन चरित के आधार ग्रन्थ = मूलगोसाई (बेनीमाधवदास), तुलसीचरित (रघुवरदास), भक्तमाल की टीका( प्रियादास)
- जन्म=1532-1623 ई० (1554 विक्रमी मृत्यु=1680 विक्रमी) ( विभिन्न मत)
- पिता का नाम=आत्माराम दुबे , माता का नाम= हुलसी
- जन्म स्थान= एटा जिले के सोंरो नामक स्थान पर (शुक्ल ने सूकर खेत, शिवसिंह सेंगर ने राजापुर)
- कहा जाता है कि अभुक्तमूल नक्षत्र में पैदा होने के कारण पिता द्वारा त्याग, प्रसूतिकाल में माँ की मृत्यु , पालन-पोषण मुनिया नामक दासी द्वारा
- बचपन का नाम रामबोला , बाबा नरहरिदास से शिक्षा, बाद में बनारस में महात्मा शेष सनातन की पाठशाला में 15 वर्ष तक अध्ययन |
- इनके मित्र= नवाब अब्दुर्रहीम खानखाना, महाराज मानसिंह, नाभादास, मधुसुदन सरस्वती और टोडरमल आदि |
- विवाह= रत्नावली से, प्रति पर अति आसक्त, मायके जाने पर चढ़ी नदी पार करके पत्नी के पास पहुंचे
- तो उन्होंने दुत्कारते हुए कहा-
- 1. लाज न लागत आपकौं दौरे आयहु साथ | धिक्-धिक् ऐसे प्रेम कौं कहा कहौ मैं नाथ ||
- 2. अस्थि चरम मय देह मम तामैं ऐसी प्रीति | तैसी जौ श्रीराम महं होति न तौ भव भीति ||
- इन वचनों से विरक्त होकर काशी चले गए |
- शुक्ल ने इनकी बारह रचनाएँ मानी हैं-
- बड़े ग्रन्थ= रामचरितमानस, विनयपत्रिका, कवित्त रामायण (कवितावली-काशी में फैली महामारी का वर्णन), दोहावली, गीतावली,
- छोटे ग्रन्थ=
- रामलला नहछू (बोलचाल की अवधी में 20 छंदों में लिखी)
- कृष्णगीतावली,
- वैराग्य संदीपनी (केन्द्रीय विषय वैराग्य )
- रामाज्ञा प्रश्नावली (ज्योतिष ग्रन्थ, काशी मित्र गंगाराम की सहायता के लिए, भाग्यदशा, शुभ-अशुभ, ब्रजभाषा में)
- बरवै रामायण (बरवै छंद में रहीम के कहने पर रचना की )
- पार्वती मंगल (खंडकाव्य, 90 छंद, पार्वती के जन्म से लेकर शिव से विवाह तक का वर्णन)
- जानकी मंगल (अवधी भाषा में 120 छंदों में लिखी गई जिसमें सीता-राम के विवाह का वर्णन)
- प्रथम रचना=वैराग्य संदीपनी, अंतिम रचना=कवितावली
- राम चन्द्र शुक्ल ने इन्हें स्मार्त वैष्णव माना है |
- ये रामानुजाचार्य के श्री सम्प्रदाय और विशिष्टाद्वैतवाद से प्रभावित है | इनकी भक्ति भावना दास्य भाव की है |
तुलसी के बारे में विभिन्न विद्वानों द्वारा कही गई पंक्तियाँ
विद्वान | प्रमुख कथन |
नाभादास | कलिकाल का वाल्मीकि |
स्मिथ | मुगलकाल का सबसे महान व्यक्ति |
गिर्यसन | बुद्धदेव के बाद सबसे बड़ा लोक नायक |
रामविलास शर्मा | जातीय कवि |
अमृतलाल नागर | मानस का हंस |
रामचन्द्र शुक्ल | इनकी वाणी की पहुँच मनुष्य के सारे भावों व्यवहारों तक है | |
रामचन्द्र शुक्ल | अनुप्रासों का बादशाह |
हजारी प्रसाद द्विवेदी | भारतवर्ष का लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय का अपार धैर्य लेकर आया हो | |
रामचरितमानस
- इसे 2 वर्ष और 7 माह 26 दिन में लिखा |
- इसमें कुल सात काण्ड हैं- बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड( काशी में लिखा गया ), सुन्दरकाण्ड, लंकाकाण्ड , उत्तरकाण्ड |
- इसकी रचना अवधी भाषा में दोहा-चौपाई शैली में की गई है |
- रचना कौशल, प्रबंध पटुता, सहृदयता की दृष्टि से यह सर्वश्रेष्ठ काव्य रचना है |
विनयपत्रिका
- कलयुग से त्रस्त होकर एक पत्रिका (अर्जी) राम के दरबार में भेजने के लिए लिखी | वे चाहते हैं की सीता उनकी अर्जी राम के सम्मुख रखें |
- इसमें 279 पद हैं |
- यह ब्रजभाषा में लिखी गई है |
- यह मुक्तक गेय पदों में लिख गई है |
- प्रधान रस= शांत रस
- उपमा, रूपक उत्प्रेक्षा अलंकारों का प्रयोग
- नवधाभक्ति का वर्णन |
- विभिन्न राग रागनियों का प्रयोग=राग बिलावल, राग रामकली, राग वसंत, राग भैरव, राग केदारा, राग कान्हरा, राग टोड़ी, राग सोरठ, राग मल्हार आदि |
- उदहारण=
- अबलौं नसानी अब न नसैहौं |
- केशव कहि न जाय का कहिये |
- जाके प्रिय न राम वैदेही |
कवितावली
- कवित्त सवैया शैली में रचना
- छंद= कवित्त, सवैया और छप्पय
- इसे तुलसी की अंतिम कृति माना गया है |
- इसमें भी सात काण्ड हैं | प्रबंधत्व का अभाव |
- भाषा=ब्रजभाषा (अवधी, बँगला, राजस्थानी, अरबी-फारसी शब्दों का प्रयोग)
- उदहारण-
- अवधेस के बालक चारी सदा तुलसी मन मंदिर में बिहरैं |
- दूलह श्री रघुनाथ बने दुलही सिय सुंदर मन्दि|र मांही
गीतावली
- सूरदास (बाललीला) के अनुकरण पर रामबाल लीला का वर्णन | साम्यता
- गीतिकाव्य शैली सात काण्ड में विभक्त
- मुक्तक शैली
- रस= वात्सल्य
- भाषा=ब्रजभाषा, तत्सम शब्दों की बहुलता
- संयोग-वियोग दोनों पक्षों का निरूपण
- उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा अलंकारों का प्रयोग
- उदाहरण=दूलह राम सीय दुलही री